अक्स
अक्स
ज़मीन कांपती आसमान थर्राते ,तीनों लोक की उधेड़बुन जाती उलझकर
आते जब अमर अकबर और ये ज़ेवियर
पाताल से लेकर आकाश तक का सारा सत्त निगलकर
खतरा भी जिनसे घबराकर भागा अपनी दम दबाकर
सुनकर ये हसीन फ़साना ,मत फंस जाना श्रीमान भंवरलाल आकर
इस जंजाल के असमंजस में रखो ये बात गाँठ बांधकर
मायाजाल की माहामाया में ऐ खुदा के बंदे !
खुद अपने ही हाथों से नफरत की ऊन को बुनकर
अब पछताए होत क्या जब चिड़िया गई अपना ही जोता खेत चुगकर
कन्धों से कंधे ,कदमों से कदम मिलाकर
भस्म रगड़कर , मन का गुबार धूल में उड़ाकर
जंगल में भागते गीदड़ जान बचाकर
लड़ते तीनों जैसे सरहद पर खड़ा सिपाही सीना तानकर
यह तो बस है एक मंज़र
बस डर गए क्या देखकर इस फिल्लम का ट्रेलर
पूरी पिक्चर देखनी हो तो आ जाना इस वीरान बंज़र का शोला बनकर
डर का लावा उगलकर ज्वाला बनो जैसे नभ में दिनकर