आज़ादियाँ
आज़ादियाँ
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याद है...
जब हम आजाद हुआ करते थे
हर शाम समंदर के पास हुआ करते थे
जब हवा के झोंके छू ज़ाया करते थे
और राही हमें देख मुस्कुराया करते थे
याद है...
जब हम सफर का मजा लिया करते थे
अंजान रास्तों पर जिन्दगी जियां करते थे
जब सड़क के किनारे रुक ज़ाया करते थे
और रातभर जशन मनाया करते थे
याद है...
जब हम सब साथ हुआ करते थे
फुर्सत के पल भी खास हुआ करते थे
जब हर सहर का इन्तजार किया करते थे
और फिर वही रफ़्तार से चल दिया करते थे
याद है...
जब हम बंदिशों से दूर हुआ करते थे
नादान परिंदो कि तरह उड़ ज़ाया करते थे
जब खुलीं आखों से ख्वाब देखा करते थे
और ख़्वाहिशों के कारवां में खो ज़ाया करते थे
याद दिला दूं...
एक वक्त ऐसा भी था जब हम आजाद हुआ करते थे।