शब्दों के तानों-बानों से अथाह प्रेम।
अपनी प्रेयसी वसुंधा के इसी भार का वरण हरने ही तो आसमां क्षितिज-आकार में नीचे झुक आता अपनी प्रेयसी वसुंधा के इसी भार का वरण हरने ही तो आसमां क्षितिज-आकार में नीच...
आरज़ूओं ने आज अरमानों की चिताओं पे दर्द भरा काष्ठीय मरहम लगाया है। आरज़ूओं ने आज अरमानों की चिताओं पे दर्द भरा काष्ठीय मरहम लगाया है।
ऊंचाई की सरहद दिखती है कितनी। ऊंचाई की सरहद दिखती है कितनी।
ऐ मानव तू कैसे रुक रुक सकता है।। ऐ मानव तू कैसे रुक रुक सकता है।।
कि उसकी आत्म जागीर किसी सनामी-अनामी- गुमनामी की मोहताज नहीं। कि उसकी आत्म जागीर किसी सनामी-अनामी- गुमनामी की मोहताज नहीं।
ओ पर्वत दिगारा ! इतनी करुण पुकारें, तुझे सुनायी दे रही क्यूं नहीं हैं।। ओ पर्वत दिगारा ! इतनी करुण पुकारें, तुझे सुनायी दे रही क्यूं नहीं हैं।।
जनाब,, ब्रेड पर बटर लगाइये जरुर इतरा कर। जनाब,, ब्रेड पर बटर लगाइये जरुर इतरा कर।
यूं ही बढ़ते-बढ़ते, सफर एक रोज, हो जायेगा पूरा है ऐतबार। यूं ही बढ़ते-बढ़ते, सफर एक रोज, हो जायेगा पूरा है ऐतबार।
चढ़ता जब आफताब पहाड़ों पर, तेरे दीदार को उतरे एक प्यासी रुह! चढ़ता जब आफताब पहाड़ों पर, तेरे दीदार को उतरे एक प्यासी रुह!
वक्त का कटु खंजर, चला था, जिसको जो मिला, उसने उसको लूटा। वक्त का कटु खंजर, चला था, जिसको जो मिला, उसने उसको लूटा।