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क्या तुम्हें एहसास होता है?

क्या तुम्हें एहसास होता है?

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क्या मेरा यूँ सरहद पर

तुम्हारी हिफाज़त करने का

क्या तुम्हे एहसास होता है

एक माँ की गोद में बड़ा होता हूँ और दूसरी माँ की मट्टी में

चैन की नींद सो जाता हूँ


यूँ तो गर्व से मै अपने बदन पर

तिरंगा लपेट कर घर वापिस आता हूँ

ज़िंदा तो नहीं पर अपनी माँ की

नज़रों में अमर हो जाता हूँ

क्या तुम्हे एहसास होता है

यूँ तो जंग में मुझे वतन के लिए


अपनी जान भी कुर्बान करता हूँ

अपनी मौत के लिए मुआवाज़े की गुहार भी करता हूँ

कुछ तो मेरी कुर्बानी का

जैसे मज़ाक बना देते हैं

लगता है जैसे मेरी कुर्बानी को


चंद पैसो में तोल देते हैं

क्या तुम्हे एहसास होता है

कुछ पल फिर अपने परिवार के

साथ बैठने का जी करता है

अपनी माँ की एक झलक को

पाने के लिए दिल खुदा से मांग करता है


पर अजीब ही है दस्ता एक माँ से मिलता हूँ

तो सरहद पर धरती माँ को अलविदा कहना पड़ता है

पूछता हूँ तुम सबसे क्या तुम्हे एहसास होता है ”

मुझे मेरी मौत पर धर्म में पहले बांटा जाता है

हमें निंदा है, यह कह कर हमें अलविदा किया जाता है

क्या हमारी हर एक कुर्बानी,


हर एक खून के कतरे का तुम्हे अंदाजा होता है

पूछता हूँ तुम सबसे, क्या तुम्हे एहसास होता है

बस यही सवाल है क्या

आज़ादी के लिए हमारे

बलिदान का तुम्हे एहसास होता है

शाम सुबह तुम्हारे लफज़ो में


क्या कभी हमारे बलिदान का ज़िक्र होता है

कहते हैं बड़े खुशनसीब होते हैं वो

जिन्हे वतन की रक्षा करने का सौभाग्य प्राप्त होता है

अगर यही आज़ादी है हमारे लिए तो फिर गुलाम क्या होता है

क्या तुम्हे एहसास होता है


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