रहेंगी
रहेंगी
तारीखें सवाल उठाती हैं उठाती रहेंगी,
तख़्तनशीनों को नींद से जगाती रहेंगी।
ज़ुबानें पोशीदा होतीं हैं डर या अदब से,
खुल जाएँ ज़ुबाँ तो उनको डराती रहेंगी।
इस ज़म्हूरियत की कुछ बात है ही ऐसी,
हर कोई बोल जाता है बात ऐसी या वैसी।
नाग़वार गर होगी बात मुल्क़ के हक़ में,
ज़म्हूरियत पाठ देशभक्ति का पढ़ाती रहेंगी।
तारीख़ों से सीखो कि मुल्क़ बना है हम सबसे,
तारीख़ें मिट गयीं पर ये मुल्क़ मिटा न तब से।
ये तारीख़ें हैं रेत के उड़ते हुए ग़ुबार के मानिंद,
इस रेत को उड़ाती आँधियां आती-जातीं रहेंगी।
जो देश की बात न बोले तो ये सुन लो बरखुर्दार,
हर जुबां में कहलायेगा वो सिर्फ़ और सिर्फ़ गद्दार।
मर जाएंगे इस वतन के वास्ते हम सब तो तैयार हैं,
ये जातीं हुईं साँसे भी वतन का कर्ज़ चुकातीं रहेंगी।