Priyanka Gupta

Others

4.5  

Priyanka Gupta

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तपस्या -9

तपस्या -9

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निर्मला की बीमारी में बहुत पैसा खर्च हो गया था । यह वह दौर था ;जबकि भारत में न तो मेडिक्लेम पॉलिसी होती थी और न ही लोग इक्का -दुक्का पॉलिसीज के बारे में जागरूक थे । लोगों के पास पॉलिसी लेने के शायद पैसे भी नहीं होते थे । मानव एक सामाजिक प्राणी है ;हम भारतीय तो जीते ही समाज के लिए हैं । पूरी ज़िन्दगी यही सोच -सोचकर निकाल देते हैं कि चार लोग क्या कहेंगे ?चार लोगों में इज़्ज़त बनी रहे ।


निर्मला और उनके पति की जमा पूँजी बीमारी में खर्च हो गयी थी । इतना ही नहीं ,खर्चों की पूर्ति के लिए निर्मला के पति को कर्ज भी लेना पड़ा था । ननद और देवरों की शादी का कर्ज ,पेट पर पाँति लगा -लगाकर जैसे -तैसे चुका दिया था और सोचा था कि थोड़े पैसे बचा लेंगे तो ननद की शादी बिना क़र्ज़ लिए कर देंगे । निर्मला की सबसे छोटी ननद शादी लायक हो गयी थी ।


निर्मला के पति के साथ के लोगों की पत्नियाँ बड़ी ठाट -बाट से रहती थी । उस ज़माने में भी झाड़ू -पोंछे ,बर्तन वाली लगाकर रखती थीं । उनके बच्चे इंग्लिश मीडियम स्कूलों में पढ़ते थे । निर्मला की दोनों बच्चियाँ सरकारी स्कूल में पढ़ती थी । निर्मला खुद ही उन्हें पढ़ाती थी । दोनों बच्चियाँ भगवान् की कृपा से पढ़ने में बहुत अच्छी थी । निर्मला तो बस उन्हें अपने पैरों पर खड़ा देखना चाहती थी ।


निर्मला को अभी भी कमजोरी थी ;उसके खानपान पर भी काफ़ी प्रतिबन्ध लगे हुए थे । निर्मला अपने पति के साथ नहीं गयी थी । निर्मला की ननद के लिए भी लड़का देखा जाने लगा और एक जगह बात भी बन गयी । लड़के वालों की कोई माँग नहीं थी ;लेकिन बारात का स्वागत अच्छा चाहिए था ।


निर्मला के पति दूसरी बेटी के होने पर दुःखी से अपने दोस्तों के बीच बैठे हुए थे । तब उनके एक दोस्त ने कहा ,"दुःखी मत हो ;मैं तुझे शहर में दो जमीनें दिलवा देता हूँ । जमीनों को बेचकर बेटियों की शादी आराम से हो जायेगी । "


"लेकिन ,जमीन खरीदने के पैसे कहाँ से आएंगे ?",निर्मला के पति ने कहा ।


"चिंता मत कर ,मेरे जीजाजी ने ही कॉलोनी काटी है । पैसे जब तेरे पास हो तब दे देना । ",दोस्त ने कहा ।


निर्मला के पति ने दोनों जमीनें ख़रीद ली थी और धीरे -धीरे टुकड़ों में जमीनों के पैसे भी चुका दिये थे ।


अब ननद की शादी के लिए पैसों का इंतज़ाम करना था । निर्मला ने कहा कि ,"एक जमीन बेच देते हैं । बेटियों के भाग्य में जो होगा ;उन्हें मिल जाएगा । "


लेकिन निर्मला के पति ने यह कहकर मना कर दिया कि ,"लड़की की शादी के लिए उधार मिल ही जाएगा । हम समय पर पैसा चुका देते हैं ;इसीलिए भी उधार मिलने में कोई ज्यादा परेशानी नहीं होगी । कुछ पैसा कमिटी से उठा लेंगे । जमीन नहीं बेचेंगे । अचल सम्पत्ति बार -बार नहीं बनती । "


ननद के शादी की तैयारियां होने लगी । दोनों देवरों ने तो हमेशा की तरह किसी भी प्रकार की आर्थिक मदद देने से इंकार कर दिया था । शादी के कामकाज में दुनिया दिखावे के लिए मदद कर रहे थे ।


निर्मला के कन्धों पर पूरी शादी की बागडोर थी । शादी वाले घर में पचासों काम होते हैं । रसोई की ज़िम्मेदारी निर्मला की दोनों देवरानियों की थी । रसोई के लिए हर वस्तु की पुरगस व्यवस्था निर्मला और उसके पति ने कर दी थी । दोनों देवरानियों को तो बस बनाना और खिलाना भर था । निर्मला ने बाकी ऊपर के कामों की कमान सम्हाल रखी थी । निर्मला के भाई -भाभी भी शादी में आये हुए थे । निर्मला की भाभी उसकी पूरी मदद कर रही थी ।


शादी अच्छे से सम्पन्न हो गयी थी और दुल्हन विदा हो गयी । सब रात के जगे हुए थे और कई दिनों से थके हुए थे । सभी लोग आराम करने लग गए ;जिसे जहाँ जगह मिली ,वह वहाँ ही लुढ़क गया था ।


निर्मला की भाभी उसके लिए एक बढ़िया सी चाय बनाकर लायी और उसे दी । "भाभी ,कब से एक चाय की तलब थी । चाय के बिना मुझे तो नींद भी नहीं आती । लोग नींद भगाने के लिए चाय पीते हैं और मैं नींद लाने के लिए । "


"दीदी ,बहुत थक गयी हो न । ",ऐसा कहकर निर्मला की भाभी के टपर -टपर आँसू टपकने लगे ।


"क्या हुआ भाभी ?",निर्मला ने कहा ।


"दीदी ,आप इतना काम करते हो । आपने और जीजाजी ने अपनी बच्चियों के मुँह से निवाले छीनकर सारी जिम्मेदारियाँ इतने अच्छे से निभाई हैं । ",भाभी ने आँसू पोंछते हुए कहा ।


"भाभी ,अपने परिवार के लिए ही तो किया है । परिवार का प्यार और सम्मान जीतने के लिए बहुत कुछ हारना पड़ता है । ",निर्मला ने कहा ।


"लेकिन दीदी ,अगर परिवार फिर भी प्यार न दे तो । ",भाभी ने कहा ।


"दीदी ,मैं किसी की चुगली नहीं कर रही । लेकिन मुझे इतनी ज्यादा तकलीफ हुई है ;इसीलिए आपको बता रही हूँ । कल मैं लेटी हुई थी ;आपकी दोनों बड़ी ननदें बातें कर रही थी । उनको पता नहीं था कि मैं वहीँ लेटी हुई हूँ । ",भाभी ने कहा ।


"फिर क्या हुआ ?",निर्मला ने पूछा ।


"आपकी ननदें कह रही थी कि दोनों छोटी भाभियाँ कितना काम करती हैं । बेचारियों को साँस लेने की भी फुर्सत नहीं है । उन्होंने एक बार भी आपका नाम नहीं लिया । ",भाभी ने कहा ।


भाभी की बात सुनकर निर्मला को भी एक बार तो तकलीफ हुई ,लेकिन फिर बोली ,"कोई बात नहीं भाभी । ऊपर वाला तो सब देख ही रहा है । फिर हम तो केवल अपना फ़र्ज़ निभा रहे हैं । "


"दीदी ,बड़े लोगों ने सही कहा है कि समझने वाले का मरण होता है । अब आप सो जाओ । ",भाभी ऐसा कहकर चाय का कप रखने चली गयी थी ।


"अपनी हर ख़्वाहिश को दबाया ;जहाँ बोलना था वहाँ भी चुप्पी को अपनाया ;अपनों की ग़लतियों को माफ़ किया ;अपने आपको भुला दिया अउ उसके बाद भी हार गयी । लेकिन फिर भी सबका प्यार नहीं जीत सकी । ",ऐसा सोचकर निर्मला की आँख से न चाहते हुए भी २ आँसू लुढ़क ही गए थे । 

आज वही दोनों ननदें निर्मला की सबसे अच्छी दोस्त बन गयी हैं । दोनों देवरानियाँ तो अपनी ननदों को फ़ोन तक नहीं करती । ननदें बहुओं वाली हो गयी हैं ;अपने दुःख -सुःख की सब निर्मला से कह लेती हैं । उम्र बढ़ने के साथ ननद -भाभी दोस्त बन जाती हैं क्यूंकि दोनों ही बुढ़ापे में आने वाली समस्याओं जैसे अकेलापन ,बच्चों की उपेक्षा ,बहुओं के नाज़ -नखरे से जूझ रही होती हैं । वैसे निर्मला की बीच वाली ननद भी तो उसके साथ सोनू निगम के म्यूजिक कॉन्सर्ट में जायेगी ;तब उसकी नयी साड़ी देखकर खूब जल -भुन जायेगी । 


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