परिवर्तन (भाग-१)
परिवर्तन (भाग-१)
शादी के दसवें वर्ष में बुद्धिराम को पुत्री रत्न की प्राप्ति हुई थी, लड़की का नाम था कमला, कमला से दो वर्ष बड़ा उसका एक भाई था जिसका नाम था किशोर, आज बुद्धिराम बड़ा प्रसन्न था, उसका परिवार पूरा हो गया वर्षो से उसकी यही चाहत थी कि उसके एक बेटा और एक बेटी हो और आज वह पूरी हो गयी ।
नन्हे-नन्हे हाथ, अधखुली सी आँखे, गोल मटोल हाथ-पैर बिटिया को गोद मे लेकर प्रसन्नचित होकर उसको खिला रहा था । पास ही उसका बड़ा बेटा किशोर भी बैठा था । जो पिता की गोद मे अपने स्थान पर किसी और को बैठा देखकर रो रहा था और पिता की गोद मे जबरन आने का प्रयास कर रहा था । बुद्धिराम उसे डाँटता और फिर पुचकारता,
बुद्धिराम : "बेटा जीजी है तेरी जीजी, देख छोटी छी लाली,लाआआआली, लाली कहाँ बेटा।"
किशोर लाली की तरफ इशारा कर देता है, और पिता उसे भी अपने अंक में बिठा लेता है व दोनों के साथ बतियाता जाता, क्षणिक भर वह अपने जीवन के तमाम दुखों को भूल पारवारिक स्नेह सागर में डुबकियाँ लगा बैठा,और लगाता भी क्यों न, उसके जीवन में उनके अलावा दूसरा था ही कौनसा सुख, जिसके आलिंगन में वह इन सबको भूल बैठता | धीरे - धीरे वक्त गुजरता गया, अब बिटिया 3 वर्ष की व बेटा 5 वर्ष का हो गया |
इसी बीच एक घटना घटित हुई, बुद्धिराम के परिचित व अभिन्न मित्र रामकिशन जो पास ही के गाँव से थे, को अपनी पत्नि के इलाज के लिये उन्हें रुपयों की अतिआवश्यकता होने पर बुद्धिराम ने अपने गाँव के ही बोहरे जमींदार मनोहरी से दो लाख रुपया तीन के सूद पर उधार दिलवा दिया । मनोहरी ने भरोसे के तौर पर बुद्धिराम की जमीन के कागज अपने पास रखवा लिये |
और बुद्धिराम ने भी बिना किसी संकोच के अपनी एक मात्र आजीविका को किसी अन्य के हाथों में गिरवी रख दिया, रखता भी क्यों नहीं मित्रता में सेवा का ऐसा अवसर कभी कभार ही मिलता है, लेकिन मित्र भी ऐसी सेवा के योग्य होना चाहिये, वह भी निःस्वार्थ भावना से युक्त होना चाहिये तभी समर्पण के भाव उचित हैं अन्यता सौदा घाटे का ही होकर रह जाता है ।
दूसरा दृश्य
इधर रामकिशन की पत्नी की हालत दिनों दिन बिगड़ती ही जा रही थी । उसे गले का कैंसर हो गया, बेचारा अपने पत्नी को बचाने का हरसंभव प्रयास कर रहा था, कोई उसे साधुओं के आश्रमों पर भेज देता तो कोई उसे अस्पतालों में, रामकिशन 56 का होने के बाद भी अपनी भागदौड़ से किसी को भी यह आभास नहीं होने दे रहा था कि वह अब बूढा हो चुका है । विवाह के एक वर्ष बाद से ही उसके सिर से पिता का साया उठ गया, माँ जन्म के आठवें वर्ष में, छः बीघा खेत और चार गय की पाटौर उसे पिता से विरासत में प्राप्त हुई, रामकिशन के पिता ने रामकिशन की शादी पास वाले गाँव के मंगतूराम जी की बिटिया फूलवती के साथ कर दी, शादी के 40 वर्ष बाद भी दोनों को संतान का सुख प्राप्त नहीं हुआ । कभी - कभी गरीबी से किस्मत भी मुँह मोड़ लेती है । और जब गरीबी देती है तो छप्पर फाड़ कर देती है फिर चाहे वह दुःख हो अथवा सुख...
शेष अगले अंक में......