फिर आना गांव -1
फिर आना गांव -1
कोरोना महामारी में इतने महीनों घरों में कैद रहकर बच्चे, बड़े सभी परेशान हो गए थे, पर बच्चों की व्याकुलता बड़ों से ज्यादा होती है। अब जब कुछ दिनों से सरकार ने सब व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को, सरकारी ऑफिसों को, कॉलेज खोलने की अनुमति दे दी और इससे व्यवस्था पटरी पर आने लगी, बाजारों में फिर से चहल पहल बढ़ने लगी, तो बच्चों के अंदर बाहर निकल कर घूमने की इच्छा बलवती होने लगी। वो गांव जाने की जिद्द करने लगे, अभी पिछले साल ही तो उनके दादा - दादी उनसे मिलने शहर आए थे, तब बच्चे दादी से ही चिपके रहते थे, हो भी क्यों ना, दादी उनको गांव के बारे में बताती, अच्छी अच्छी कहानियां सुनते, तो बच्चों के अंदर गांव के प्रति एक अलग ही आकर्षण बढ़ने लगा था। बच्चे शहर में ही पैदा हुए पले बढ़े उन्होंने आज तक गांव को प्रत्यक्ष रूप से नहीं देखा था, हालांकि गांव के प्रति उनका भावनात्मक जुड़ाव महसूस होने लगा था, वो अक्सर यू ट्यूब में गांव की वीडीयो देखते, गांव के बाजारों, शादियों और रीति रिवाजों को देख कर बहुत खुश होते, उन्हें इनमें कुछ नयापन महसूस होता था, हमारी भी गलती है कि हम काम की व्यस्तता के कारण कभी उन्हें गांव नहीं ले जा पाए। पर इस महामारी ने सबको घरों में कैद कर दिया, ऑफिस स्कूल बाज़ार सभी बंद थे, तो कुछ समय हम भी बच्चों के लिए निकल पाए, तब बच्चों की मनोदशा के बारे में सोचना शुरू किया।
अब तक बच्चे ऑनलाइन कक्षाओं मे पढ़ पढ़ कर बोर होने लगे थे। सारा दिन मोबाइल में पढ़ते, गेम खेलते बच्चों को देख कर मैंने भी कुछ समय गांव में बिताने का निर्णय लिया। मुझे भी कई वर्ष बीत गए थे गांव गए हुए, मां पिताजी जो गांव में ही रहते अक्सर कहते समय निकाल का गांव आ जाओ पर अगर दोनों दंपति सरकारी नौकरी में हो तो समय की समस्या बनी रहती है और इसका खामियाजा बच्चे ही भुगतते हैं।
अब जब गांव जाने का मन बना ही लिया तो धर्मपत्नी जी ने जल्दी जल्दी सामान बांधना शुरू कर दिया। बच्चे भी बहुत खुश थे और अपनी मां का हाथ बटाने लगे सामान बांधने में, हो भी क्यों ना पहली बार गांव जाने का अवसर मिल रहा था।
सुबह तड़के सभी समान सहित तैयार बैठे थे, उनके चेहरे की चमक और गांव जाने का उत्साह देखते ही बनता था। छोटे ने कल रात को ही दादी को फोन करके बता दिया था "दादी हम गांव आ रहे हैं"।
फिर जब सारा सामान वगैरह गाड़ी में लगा लिया फिर "कुल देवता" का जयकारा लगाते हुए गांव की ओर निकल पड़े।
गांव की हरियाली हरे भरे खेत खलिहानों बाग़ नदियों पहाड़ों बादल देखने को सभी लालायित हुए जा रहे थे।बच्चे बार बार पूछते कि जब आएगा गांव, अभी कितनी देर और लगेगी गांव पहुंचने में, तो मैं उन्हें सब्र रखने को कहता, अभी थोड़ा समय और लगेगा ये कह कर उनके उत्साह को बनाए रखने का प्रयास करता।
ड्राइविंग करते करते काफी घंटे बीत गए थे, हमने कई छोटे छोटे शहर पार कर लिए थे। बच्चे धर्मपत्नी जी गाड़ी में नींद में झोंके खा रहे थे।
अब हम गांव के पास के छोटे से कस्बे में पहुंच गए, मैंने सभी को जगाया तो बच्चे खुश होकर उछलने लगे कि आ गया गांव, मैंने उन्हे बताया अभी नहीं आया अभी हम यहां पर थोड़ा नाश्ता आदि करेंगे फिर यहां से गांव के लिए निकलेंगे। फिर हम सभी नाश्ता किया, थोड़ी देर इधर उधर टहले, आसपास की प्राकृतिक छटा का नजारा लिया, बच्चे पहाड़ों को इतना पास देख कर अचंभित थे। दूर बादलों के छोटे छोटे झुंड जब आसमान में अठखेलियां करते तो मन में एक नई ऊर्जा का संचार होने लगता, धर्मपत्नी बहुत रोमांचित थी इस जगह को देख कर, शादी के कुछ साल वो गांव में रही थी तो इस जगह से अच्छे से वाकिफ थी।
मुझे तो गांव की सोंधी सोंधी खुशबू अभी से आने लगी थी, उधर मौसम भी हमारे आने के उत्साह में बरसने लगे थे, धीरे धीरे चारों ओर कुहरा छाने लगा, अचानक मौसम में ठंडक बढ़ गई, सिहरन होने लगी पर हम सब बहुत खुश थे।
बहुत खुश..........!!!
हम सभी फिर गाड़ी में बैठ कर गांव की ओर चल पड़े, जैसे जैसे सर्पिली सड़कों से गुजरते छोटे छोटे पहाड़ों से होते हुए हम गांव की ओर बढ़ रहे थे तो मेरी दिल की धड़कन बढ़ने लगी थी और बच्चे खुश होकर गा रहे थे।
अब हमें हरे हरे खेत नजर आने लगे, छोटे छोटे गांव पहाड़ों पर ऐसे दिख रहे थे जैसे खुद प्रकृति ने मोती छिड़क दिए हो। धीरे धीरे हम गांव के बहुत नजदीक पहुंच गए तो बच्चे ख़ुशी से फूले नहीं समा रहे थे, बार बार अपनी मम्मी से पूछते कि हमारा गांव कौन सा है, और धर्मपत्नी जी बड़े प्यार से गांव की ओर इशारा कर उन्हें बताती कि वो वाला, "वो वाला गांव हमारा है", बच्चे उत्सुकता में देखने लगते, अब उनकी धीरता जवाब देने लगी थी वो जल्द से जल्द गाड़ी से उतर कर गांव पहुंचना चाहते थे, अपनी दादी दादा से मिलना चाहते थे।
क्रमशः .........