Poonam Singh

Others

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Poonam Singh

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" नई सुबह '

" नई सुबह '

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"रामदीन ट्रक में सारा सामान भरवा दिया ना ??"

"हाँ हाँ मालिक अपनी देख - रेख़ में ही सारा सामान बँधवाया है आप बिल्कुल भी चिंता ना करें।"

" समान पहुँचाने का जो पता है वो भी संभालकर रख लेना।"

" जी मालिक वो भी सही से रख लिया है।"


 दीनू परेशान था क्योंकि इस बार भी हर साल की तरह केसर, बादाम की फसल उतनी अच्छी नहीं हुई थी । घर में तीन- तीन बेटियों के ब्याह की चिंता दिन - रात उसे परेशान कर रही थी..। पर कुछ उपाय दिखता नजर नहीं आ रहा था...।


समय की चढ़ती धूप में उसकी आँखें चौंधिया रही थी बरबस ही उसके हाथ आँखों को ढाप लेते। चिंतित मुद्रा में खामोश । खेत की मेड़ पर बैठ छावँ की प्रतिक्षा में था ताकि अगली फंसल की तैयारी के लिए अपने खेत जोत सके। की तभी पीछे से किसी की आवाज़ पर चौंका। 

"यह लीजिए मालिक इस बार सौदे की रकम के साथ साथ उन्होंने पेशगी भी दी है..।" रामदीन ने अपने पॉकेट से नोटों की गड्डी निकालकर दीनू की ओर बढ़ाते हुए कहा..।

"अच्छा.. इस बार उन्होंने पेशगी भी दी है ..! " 

 "हाँ.. और सेठ ने संदेशा भिजवाया है ..कहा है ,एक बार उनसे मिल लेना।" 

" ठीक है मिल लूँगा..." आश्चर्य भरी नजरों से पेशगी की तरफ आँख गड़ाए दिनू ने जवाब दिया, "चलो अच्छा है इस बार मैं अपनी फसलों पर और अधिक ध्यान दे पाऊँगा ।" दीनू ने अपनी प्रसन्नता जाहिर करते हुए कहा।

 दीनू ने झट से अपने लंगोटिया दोस्त रघु को फोन लगाकर अपने पेशगि वाली बात बताई। रघु उसके बचपन का अजीज मित्र था । हर सुख- दुख में दोनों एक दूसरे के साथी थे। और एक दूसरे के घर आना जाना भी था। हालांकि पेशगि वाली बात सुन वो थोड़ा चौंका और अपने मित्र को आगाह भी करना चाहा ताकि वो किसी मुसीबत में ना फंसे। 

समय बीता और चंद महीनों में ही दीनू की किस्मत चमक गई । पिछली बार के मुकाबले इस बार फसलों से अच्छा फायदा हुआ था और साथ ही उसने दूसरा रोजगार भी शुरू कर दिया था जिससे आमद काफी बढ़ गई थी । अपनी जिंदगी में उसने इतने पैसे कभी देखे नहीं थे..! खूब पैसे बटोरे। 

 इस बीच रघु से उसका मेल - जोल भी थोड़ा कम हो चला था। रघु ही उसे कई बार मिलने आ जाता और उसकी बढ़ती हुई तरक्की को देखकर उसे आश्चर्य तो होता ही पर थोड़ी शंका भी होती..। लगे हाथ वो दीनू को सलाह देता," देख दीनू पेशगी के लालच में किसी गलत काम में ना फँस जाना.."! "ईश्वर पर भरोसा रखना । बच्चे अपना भाग्य लेकर आते हैं..। उनकी किस्मत में ईश्वर ने ब्याह का गाठ जहाँ बाँध दिया होगा वहाँ हो ही जायेगा।"

लेकिन हर बार दीनू उसे 'सब कुछ ठीक है।' कह कर आश्वस्त कर देता। 

ऐसा पहली बार हुआ जब दीनू बहुत बड़ी बात अपने मित्र से छुपा गया। उसके आँखो पर लालच का ऐसा पर्दा पड़ा गया था कि उसे अपने दुर्गति का अहसास ही नहीं हुआ और हैवानियत के गर्त में डूबता चला गया। उसने अपने काम के साथ- साथ सेठ के लिए देह व्यापार का धंधा शुरू कर दिया था। 

और इसकी खबर उसने कानों कान किसी को भी ना होने दी। 


एक साँझ दीनू का ड्राइवर रोते बिलखते रघु के पास पहुँचा और उसने दीनू की सारी कहानी उगल दी और कहा.. " दीनू भैया.. कई दिनों से गायब है कुछ अता पता नहीं है और.. उनकी बेटियाँ भी....." इससे आगे कुछ बोल ना पाया। "आप कुछ कीजिए मालिक।" रामदीन के मुँह से सारी बातें सुनकर उसके तो होश उड़ गए । उसने बातों की तह तक पहुँचने के लिए थोड़ी और खोजबीन की। पूछा; "यह सब सिलसिला कब से चल रहा है ? मेरा मतलब उस सेठ से दीनू मिला कैसे?"

 "आपको याद होगा.." रामदिन ने बताना शुरू किया "हाल ही में सेठ - सेठानी के सालगिरह के जलसे में सेठ की तरफ से अपने शहर के हर छोटे - बड़े व्यापारी का पूरे परिवार के साथ आमंत्रण था ,और वहीं पर उस दरिंदे की नजर उनकी बच्चियों पर पड़ी। इसके बाद की सारी बात तो आप जानते ही हैं।"

" हाँ,..बीच में एक बार सेठ ने दीनू भैया को मिलने के लिए बुलाया था.., और कहा था.. "दीनू तुम्हे जितनी भी पेशगी चाहिए ले लो पर हमारा काम रुकना नहीं चाहिए ,अगर रुका तो पैसे के साथ साथ ब्याज भी देना पड़ेगा..!" "लालच में आकर दीनू भैया ने जुबान दे दी और साथ ही सेठ ने उनसे कोरे कागज पर भी सही करा लिया ।"

 रघु को सारी बात समझते देर ना लगी, की दीनू के साथ साथ घर की बेटियाँ भी उस सेठ के चुंगल में फँस चुकी है। रघु का तो जैसे माथा ठनका हुआ था समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे ....! 

 सहसा उसके दिमाग में एक विचार कौंधा और कुछ ही घंटो में वो सेठ के दरबार में हाजिर था। सेठ के सामने हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाते हुए कहा... "हजूर यह देखिए आप की पेशगी के साथ-साथ बला की खूबसूरत साक्षात स्वर्ग की अप्सरा लेकर आया हूँ ।"

 तभी सेठ के कुछ आदमियों में से एक लंबा-चौड़ा काले रंग के एक नौजवान ने आगे बढ़ कर कहा .. "अबे ओय छुटंकी.. तू जानता है ना कि किससे बात कर रहा है ? "

" हाँ - हाँ हजुरे वाला क्यों नहीं जानेंगे.. इनका रुतबा तो दूर-दूर तक फैला है । अगर कोई शक हो तो आप स्वयं ही चाँद का टुकड़ा देख ले..!" रघु ने थोड़ा हकलाते हुए कहा और किसी के आज्ञा की प्रतीक्षा किए बिना ही लड़की के मुख पर का घूंघट हटा दिया। उसकी खूबसूरती देखते ही सेठ मंत्रमुग्ध हो गया और कहा... "चलो ठीक है इनका घूंघट गिरा दिया जाए...।" और अपने आदमियों को उसने कुछ इशारा किया ।

और कुछ ही क्षण में उसके आदमी रामदीन और उसकी बेटियों को सामने लेकर हाज़िर था। अपने मित्र को सामने देख दोनों की आँखें भर आई। जल्दी से वो वहाँ से निकले। 


 "ईश्वर की मेहरबानी हैं मुझपर जो तुम जैसा मित्र मिला ..। अन्यथा आज मैं जिस नरक से निकल कर आ रहा हूँ , वो मै ही जानता हूँ..।" उसने रघु की ओर मुखातिब होकर भर्रायी आवाज़ में कहा।

 रघु ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए हिम्मत और सहारा दिया। मन ही मन आज उसे अपने कुकर्मों पर पछतावा हो रहा था और आँखों से झरझर आँसू  बहने लगे। 

थोड़ी देर बाद अपने आप को संयत कर रघु की ओर देखते हुए पूछा... "वैसे ये सब तूने किया कैसे ? तुझे अपनी जान का भय नहीं हुआ ..? "

"अरे भय कैसा ..? "

 अब तक तो वह सेठ और उसके सभी साथी सब जेल में होंगे..।" रघु ने कहा। 

" क्या..या.." विस्मित नेत्रों से रघु की ओर देखते हुए दीनू ने पूछा .. "और वो सुंदरी बाला ?? "  

"वो कोई और नहीं उस एरिया की आई पी एस ऑफिसर थी और उनकी टीम को उस सेठ की बहुत दिनों से तलाश थी..!"

 "और वो पैसे जो तू बक्सा भर के ले गया था ... वह कहाँ से आए..?"

" अरे वह नकली पैसे थे मेरे दोस्त... और उस सेठ के लिए उस रूपसी के सामने पैसे का क्या मोल.. उसने पैसों की तरफ ध्यान ही नहीं दिया..!"

 घर पहुँचते हुए रास्ते में दूर से अपने खेतों की तरफ दीनू ने एक सरसरी भरी निगाह घुमाई तो उसने महसूस किया जैसे.. चारों ओर फैली उदास बंजर भूमि से एक ही आवाज़ आ रही थी , जब तुमने "बोया बबूल तो आम कहाँ से होय ..?" 

हालांकि दीनू को गैरकानूनी काम के जुर्म में जेल की सज़ा हुई । पर सेठ के नाजायज कामों का पर्दाफाश करने में उसने कानून की पूरी मदद की , और जेल में उसके अच्छे व्यवहार के लिए चंद महीनों में ही उसकी रिहाई हो गई..।

जेल से बाहर कदम रखते ही उसने ऊपर आकाश की ओर नज़रे घुमा कर देखा , लगा जैसे कि जिंदगी एक नई सुबह के साथ उसका स्वागत कर रही हैं....।




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