Archana Tiwary

Others

4.6  

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मेरा घर मुझसे कुछ कहता है

मेरा घर मुझसे कुछ कहता है

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कल सुबह सुबह जब मैं घर की सफाई कर रही थी तो अचानक महसूस हुआ कि पीछे से कोई माँ -माँ कह कर बुला रहा है। पीछे मुड़कर देखा तो वहां कोई न था ।कमरे में झाँका तो किशन सो रहा था और राकेश तो दिल्ली में है। ये दोनों बच्चे मुझे मम्मी कह कर पुकारते हैं, फिर यह मां की आवाज कहां से आ रही है ।मुझे लगा शायद पड़ोस में रोमा का बेटा उसे बुला रहा है। मैं इसी उधेड़बुन में फिर से काम में लग गई। 


  यह किशन भी न अपने कपड़े कभी भी ढंग से नहीं रखता है। मैं मन ही मन उस पर नाराज होती हुई उसके कपड़े, किताब ठीक करने लगी तभी फिर से मां की आवाज आई।मुझे लगा कोई मेरे ठीक पीछे खड़े होकर पुकार रहा है। इस बार मैं डर गई। मैं चाहती थी कि पति को आवाज दूं पर वह मेरा मजाक उड़ाएंगे इसलिए मैंने उन्हें नहीं पुकारा। अब इस उम्र में शायद मेरे कान बज रहे थे या कोई वहम हो रहा था। कुछ समझ न आ रहा था ।आखिर सहमते हुए धीरे से मैंने पूछा -"कौन है वहां , कौन माँ कह कर पुकार रहा है"? प्रत्युत्तर में आवाज आई -मैं हूं, पीछे देखो। मैंने जब पलट कर देखा तो कमरे की दीवार से आवाज आती प्रतीत हुई। मैंने पूछा-" कौन है दीवार के पीछे"? हंसते हुए आवाज आई- मैं हूं, आपका तीसरा बेटा आपका घर "अर्चप्रभा "।  मैंने आश्चर्य से कहा- "अभी तक तो मैंने सुना था की दीवारों के कान होते हैं और अब क्या यह बोल भी सकते हैं"?  

"हां , माँ मैं अर्चप्रभा ही हूं ।" यही नाम तो मैंने अपने घर का रखा है। अभी छः महीना पहले ही हम सब नए घर में रहने आए हैं ।सच कहूँ तो ये घर हमारे सपनों के महल जैसा है। मेरी कल्पनाओं को साकार करता यह घर। मैंने पूछा -"क्या तुम सचमुच बात कर सकते हो, तो तुमने इतने दिनों से मुझसे बात क्यों नहीं की"? आवाज आई मुझे कुछ दिनों से आपके स्पर्श की आदत हो गई है ।आप किशन की तरह ही मेरा भी ख्याल रखती हैं। पहले तो काम वाली बाई मेरा रखरखाव करती थी तो मेरी ओर ज्यादा ध्यान नहीं देती थी। मेरे ऊपर पडी धूल वैसी ही पड़ी रहती थी, पर आप तो मुझे बहुत स्वच्छ रखती हैं । मैं स्वच्छ रहूंगा तो घर भी पवित्र बना रहेगा ।सामने लगी दीवार पर जो आईना है उसमें जब मैं अपनी शक्ल देखता हूं तो खुशी से झूम उठता हूं। यह आईना भी आपके स्पर्श का अनुभव कर चमक उठता है। आपने तो बाहरी हिस्से के बगीचे को ऐसे संवारा है कि हर आने जाने वाली की नजर उस पर चली जाती है ।उसमें खिले मोगरे और रात की रानी के झडते फूलों की खुशबू मुझे मदहोश कर देती है ।दीवारों के सहारे चढ़ती बेल पर भी छोटी काली चिड़िया ने घोंसला बना लिया है शायद वह भी अपने आप को आपके पास सुरक्षित महसूस करती है । उसके अंडे से जब बच्चे आएंगे तो सबसे पहले मैं ही देखूंगा।  बगीचे के बीच में क्यारियां बनाकर आपने जो टमाटर और मिर्ची के पौधे लगाए हैं उसमें जब फल आए तो सबसे पहलेउसे भी मैंने ही देखा था। सुबह सुबह जब आप हरे हरे दूब पर नंगे पाव चलते हैं तो आपकी वह खुशी मैं भी महसूस करता हूं ।आखिर ,मैं हूं तो आपका बेटा ही न।" 

मैंने कहा -"अच्छा छोड़ो ,यह प्रशंसा करना। बताओ ,जब मैंने इसमें कील लगाई और कबड बनवाएं तो तुम्हें बहुत दर्द होता होगा न, मैंने तो इस बारे में कभी सोचा ही ना था।" उसने कहा -"यह दर्द तो मामूली सा दर्द है । कील में जब आपने अपनी बनाई पेंटिंग लगाई तो मेरी खूबसूरती और बढ़ गई। कबर्ड बनाकर भी तो आपने मुझे ही सजाया है। इधर उधर बेतरतीब से फेंकी चीजों को सुव्यवस्थित कर मुझ पर उपकार किया है। आपने दर्द की बात निकाली तो आज मैं अपने मन की बात आपको बताता हूं।" मैं वहीं सोफे पर बैठ गई और कहा- "चलो बताओ, कुछ भी छुपाना नहीं। मैं सारी बात सुनना चाहती हूं।" उसने कहा - "जब बिल्डर मुझे बना रहे थे तो बड़ी बेदर्दी से उठाते- पटकते थे ।कभी-कभी तो पूरी बन जाने के बाद तोड़ देते थे। जिससे मुझे असह्य दर्द होता था ।जब मैं उस दर्द को झेलता था तो हमेशा ईश्वर से प्रार्थना करता था कि मुझे एक ऐसा परिवार देना जो मुझे अपना समझ मेरे दुख दर्द को महसूस करें और देखिए ईश्वर ने मेरी बात सुन ली। मुझे मनचाहा परिवार मिल गया ,आप जैसी ममतामयी माँ, पिता का संरक्षण और इतना प्यारा भाई किशन और राकेश।  मैं आज आपसे वादा करता हूं चाहे कुछ भी हो मैं आपका साथ छोड़कर कभी नहीं जाऊंगा। भविष्य में अगर किशन और राकेश आपसे दूर चले गए तो मैं उसकी जिम्मेदारी निभाउंगा।" उसकी बातें सुन मन में एक अजीब सी शांति का अनुभव होने लगा । सही कहा था उसने हमें न जाने कितने दर्द सह कर भी, सुख के इंतजार में असह्य पीड़ा का अनुभव धीरे धीरे कम होने लगता है।      

हमआशावादी बने रहते हैं ।मैंने महसूस किया है प्यार की भूख सिर्फ इंसानों को नहीं हमारे आसपास फैले बेजान चीजों को भी होती है।   हां, उनके प्यार जताने का तरीका हम इंसानों से अलग होता है जिसे समझना आसान नही होता है।


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