कालचक्र
कालचक्र
परिचय: भारतीय मान्यताओं के अनुसार समय रेखिक नहीं अपितु चक्रीय यानी साइकलिकल है। एक ही घटना विभिन रूप में बार बार आदिकाल से वर्तमान तक घटित होती रहती हैं। हमारा नाटक कालचक्र इसी मान्यता पर आधारित है। आइये ले चलें आपको आदिकाल में….
१
(पर्दा उठने पर शिवजी कुछ विचलित से मंच पर डोलते हुऐ दिखते हैं। कुछ ही देर में पार्वतीजी आती हैं।)
पार्वतीजी "आप आ गए। मुझे पता भी न लगा।"
शिवजी "हाँ कुछ देर हुई आए। और मुझे शीघ्र ही फिर से जाना है।"
पार्वतीजी "अरे अभी अभी तो आऐ हैं। बताइये तो कैसी रही आपकी ध्यान यात्रा?
शिवजी "वैसे तो ठीक थी पर इस बार अचानक मेरी गजराज से मुठभेड़ हो गयी।
पार्वतीजी "आप हाथियों के चक्कर में कैसे फंस गए।"
शिवजी "क्या बताऊँ पार्वती मेरे एक मित्र कुछ दिनों से कह रहे थे कि एक हाथियों के समूह ने उनके गाँव में तहलका मचा रखा था।"
पार्वतीजी "और उन्होंने आपसे सहायता मांगी होगी।"
शिवजी "इस बार मैनें सोचा देखूं मैं कुछ उनकी सहायता कर सकूं तो।"
पार्वतीजी "और आप चले हाथिओं से टक्कर लेने। तो क्या सहायता करी उनकी ?
शिवजी "कुछ दिन पहले जब हाथियों का समूह गाँव पंहुचा तो एक हाथी का बच्चा जो उत्पात मचा रहा था उसे एक गाँव वाले ने मार दिया। इस वजह से गजराज मनुष्यों से नाराज थे।
पार्वतीजी "अरे मैं अपने बेटे गणेश को यहाँ छोड़ कर नहाने गयी थी। कहाँ गया। आपने देखा था जब आप आए।"
शिवजी "हाँ देखा तो था।"
पार्वतीजी "तो कहाँ गया। हौ! यह क्या हो गया। किसी ने इसका गला काट दिया। आपके अलावा और तो कोई नहीं आया होगा यहाँ। क्या आपने मेरे बेटे का गला काट दिया ?"
शिवजी "हाँ मैंने काटा इसका गला!"
पार्वतीजी "यह आप कैसे कर सके। जोश में आकर आप जने क्या कर बैठते हैं। आपको तो मालूम होना चाहिए था कि वो मेरा बेटा था। इसी कारण सब आपको त्रियंबकम बुलाते हैं। आपकी तीसरी आँख क्यों बंद हो गयी थी उस समय। उसे धक्का दे कर अंदर आ सकते थे। घर से निकाल सकते थे। इतनी शक्ति तो है आपमें। गला काटने की क्या आवश्यकता थी।
शिवजी "आपके इन प्रश्नो का उत्तर मैं कुछ देर में दूंगा।"
पार्वतीजी "आपको कुछ तो बताना होगा।"
शिवजी "आप कुछ देर यहीं ठहरिये। मैं जल्द ही वापस आता हूं। फिर सब आपको समझ आ जाएगा।"
(शिवजी मंच से चले जाते हैं। पार्वतीजी परेशान हो कर बैठ जाती हैं)
पार्वतीजी "मुझे मालूम था कभी ऐसा दिन भी आएगा. आखिर इन्ही शिवजी ने मेरे सती होने के बाद जोश में आकर मेरे पिता दक्ष का गला काट दिया था।"
२
अब इसी घटना को वर्तमान में देखिये। ध्यान रखिये शिवजी को आशुतोष नाम से भी जाना जाता है, पार्वती को उमा और गणेश का नाम अविनाश भी है।"
(उमा दुःख से भरी अपना सिर पकडे बैठी है और आशुतोष जल्दी से अंदर आता है)
आशुतोष "उमा तुम तैयार नहीं हुईं? याद है आज हमें गणेश पूजन पर जाना है।"
उमा "आशुतोष मैं तो गणेश पूजन का सोच भी नहीं सकती। गजब हो गया आज।"
आशुतोष "ऐसा क्या हुआ?"
उमा "अवनीष गायब है।"
आशुतोष: हमारा बेटा गायब है? क्या हुआ? ठीक से बताओ।"
उमा "रोज की तरह आज भी सवेरे वो कॉलिज गया था। ज्यादातर एक बजे से पहले भूखा घर आता है और आते ही खाना खाता है। मैंने तीन बजे तक इंतज़ार किया फिर मैंने उसे फ़ोन किया। जब उसने नहीं उठाया तो मैंने उसके सब दोस्तों के घर फ़ोन किया। जब कहीं न मिला तो आपको भी फ़ोन किया था पर आपने भी नहीं उठाया। तभी से बार उसे फोन कर रही हूँ ….
आशुतोष "(टोकते हुए) इतना परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। हमारा इतना होनहार बेटा है।" तुम खाना लगाओ आता ही होगा।"
उमा "अभी कुछी देर पहले उसके कॉलेज से फोन आया था।"
आशुतोष "क्या कह रहे थे ?"
उमा "कह रहे थे आपके होनहार बेटे ने अपना नाम कॉलेज से कटवा दिया है।"
आशुतोष "अपना नाम कॉलेज से कटवा दिया है। ये क्या बेहूदी हरकत है। तो क्या करना चाहता है ?"
उमा "ये आप जाने और आपका होनहार बेटा।"
(अवनीश पैंट कमीज पहने मंच पर आता है और एक तरफ मुँह नीचे कर के खड़ा हो जाता)
उमा "आ गया। पूछिए इनसे कहाँ गायब थे सारे दिन।
आशुतोष "हाँ कहाँ थे सारा दिन। तुम्हारी मम्मी कितनी परेशान थीं।
अवनीश "मैं कल ऋषिकेश जा रहा हूँ।
उमा "सालों से तुम इंजीनियर बनना चाहते थे, अचानक क्या हो गया। ऋषिकेश जाना है तो जाओ कॉलेज से अपना नाम कटवानेकी क्या जरूरत थी।
अवनीश "मैंने ऋषिकेश में गणानन्द आश्रम के आचार्य से दीक्षा लेने का निश्चय किया है।
उमा "बस जो चाहा आपने निश्चय कर किया। अपने माँ बाप को बताने की कोई जरूरत नहीं समझी। कब से चल रहा है ये सब?
अवनीश "जब से पापा ने इसका सुझाव दिया था।
उमा "(आशुतोष को देखते हुए) क्या आपने इसे कॉलेज छोड़ने का सुझाव दिया था?
आशुतोष "इसका IIT की पढ़ाई में मन नहीं लग रहा था , मैंने कह दिया।
उमा "यह आप कैसे कर सके। अपने जोश में आकर आप जने क्या कर बैठते हैं। बिना मुझसे सलाह लिए आप कैसे ऐसा सुझाव दे सकते हैं। (अवनीश को देखते हुए) इतनी मेहनत कर के तुम IIT में गए थे। पहले इंजीनियर बन जाओ फिर चले जाना ऋषिकेश। क्या क्या सपने देखे थे तुम्हारे लिए।
अवनीश: मेरे भी तो सपने हैं। और नए सपनो को सच करने के लिए हमे पुराने सपनो को मारना होता है।
उमा "जरा समझाओ मुझे ऐसा क्या हुआ जो तुमने इतना बड़ा कदम लेने का निश्चय किया।
अवनीश "आप दोनों हमेशा से गणेश जी के भक्त रहे हैं। जब मैं खुद को नहीं जानता था मैं भी गणेश जी की पूजा करता था।
आशुतोष "तो इसमें क्या खराबी है?
अवनीश "कोई खराबी नहीं पर जैसे जैसे मैंने खुद को जाना मैंने अपने में ही गणेश का चिन्ह पाया। अब मैं अपने गणेश को और जानना चाहता हूँ।
आशुतोष "मैं कुछ समझा नहीं।
अवनीश "एक और तरह से कहें तो सालों सगुण के साथ रहने के बाद मैं अब निर्गुण की ओर जाना चाहता हूँ।
उमा "बहुत व्याख्यान दे दिया तूने। तेरी तो मैं ऐसी खबर लूंगी एक दिन। किसी और की नहीं सोचता। चल अब कुछ खा ले भूख लगी होगी।
अवनीश "(हँसते हुए) देखा, जैसे एक अपनी मौजूदा दशा को दूर करने के लिए कुछ नया खाना होता है वैसे ही कुछ नया पाने के लिए अपने कॉलेज से नाम कटवाना होता है। कुछ नया बनाने से पहले पुराने को मारना होता है।
३
आइये अब आपको आदिकाल में शिव और पार्वती का वार्तालाप दिखाते हैं।
(पार्वती जी और शिवजी साथ में मंच पर आते हैं।)
पार्वती "एक बात बताइये आपने मेरे बेटे पर किसका सिर लगाया था ?
शिवजी "अरे उसी हाथी के महीने भर के बच्चे का जिसे गाँव वालों ने मार दिया था। कैसा लगा आपको अपना नया बेटा ?
पार्वती "अच्छा है। लेकिन पुराना भी ठीक था। पहले वाले को मैंने अकेले बनाया था, नया हम दोनों का है।
शिवजी "आखिर बेटा तो पती और पत्नी दोनों का ही होना चाहिए न। आपका बेटा सभी देवी देवताओं के बेटों में विशिष्ट है।
पार्वती "हमारा बेटा इतना होनहार निकलेगा मैंने कभी सोचा भी नहीं था।
शिवजी "एक हाथी का मस्तिष्क उसके इतने बड़े शरीर को संभालता है। उसी मस्तिष्क को आप अगर मनुष्य के छोटे से शरीर पर लगा दें तो वो मनुष्य होनहारों में होनहार न होगा तो क्या होगा।अच्छा मुझे कुछ कार्य से जाना है। खाना आ कर खाऊंगा।"
(ऐसा बोलते हुए शिवजी मंच से चले जाते हैं। पार्वतीजी वहीँ बैठ जाती हैं। )
४
आइये अब फिर वर्तमान में चलें…
(आशुतोष मंच पर आता हैं)
आशुतोष "उमा, अवनीश ने आज ही के लिए आने को कहा था न।"
उमा "हाँ आता ही होगा। उसने कहा था कि आकर अपनी माँ के हाथ का खाना खायगा।"
आशुतोष "कितने सालों बाद आ रहा है हमारा बेटा।"
(अवनीश कुर्ता पजामा पहने, टीका लगाए हुए मंच पर आता है}"
आशुतोष "आओ अवनीश। वाह कितने बदल गए हो बिलकुल पहचान में नहीं आ रहे।"
उमा "अरे अवनीश बेटे आ तुझे देखने को तेरी माँ तरस गई थी।"
अवनीश "याद तो मुझे भी बहुत आई पर एक बात बता दूँ। अब मैं अवनीश नहीं रहा।"
आशुतोष "अवनीश नहीं तो क्या है अब?"
अवनीश "दीक्षा के बाद मेरे गुरु ने मेरा नाम योगी सूर्य नाथ रख दिया है। अब मैं इसी नाम से जाना जाऊंगा।"
आशुतोष "नाम में क्या रखा है, बेटा तो तू हमेशा हमारा ही रहेगा। और सब कुछ कैसा चल रहा है?"
अवनीश "बहुत अच्छा। आपको मालूम है मैं उत्तर प्रदेश की विधान सभा से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा हूँ।"
उमा "और बातें फिर हो जायेंगी। मैंने तेरी पसंद का खाना बनाया है। चल।"
(तीनों मंच से जाने लगते हैं। )
आशुतोष "(अवनीश के गले में हाथ रखते हुए ) वाह योगी सूर्य नाथ जी मुझे मालूम है एक दिन हमारा बेटा उत्तर प्रदेश का मुख्य मंत्री बनेगा। आखिर हमारा बेटा है तो गणेश का अवतार।"
५
(शिवजी मंच पर ध्यान में मग्न हैं। तभी पार्वती जी आ कर उन्हें उठाने लगती हैं।)
शिव "(झुंझलाते हुए) क्या हुआ?
पार्वती "मैं आज बहुत प्रसन हूँ।
शिव "ऐसा क्या हुआ हम भी तो सुने।
पार्वती "मालुम है सब देवी देवताओं ने निश्चय किया है की मेरे बेटे गणेश की पूजा सबसे पहले की जाएगी।"
शिव "गणेश आपका ही नहीं हमारा भी बेटा है।"
पार्वती "हाँ मेरा मतलब वही तो है।"
शिव "हम भी बहुत प्रसन हैं।"
पार्वती "आज मैं मान गई लोग आपको त्रियंबकम क्यों बुलाते हैं। मैंने तो अनजाने में उसका नाम गणेश रखा था, आपने उसे सच कर दिया। आज हमारा बेटा सच में सब गणों का देवता बन गया। मेरी आपसे एक विनती है।"
शिव "बोलिये।"
पार्वती "अब से आप किसी का गला नहीं काटियेगा।"
शिव "सच तो यह है पारवती मैं तो निर्गुण हूँ, मेरे सारे गुण तो मेरे भक्त अपनी इच्छा अनुसार ही उजागर करते हैं। वो चाहें तो मैं किसी का गाला काट देता हूँ और ना चाहें तो कुछ भी नहीं करता।"
पार्वती "फिर भी गला काटने की नौबत न आये तो ठीक होगा।"
शिव "पर आप भी उन सभी से कह दीजिये जो हमें त्रियम्बकं कहते हैं हमें विनाशक न मानकर निर्माता माने क्योंकि किसी भी निर्माण से पहले प्राचीन का विनाश आवश्यक है ।"
पार्वती "(सिर झुका कर प्रणाम करते हुए) उस दिन मैंने आपको क्या कुछ कह डाला। आज मुझे आपकी शक्ति का अनुभव हुआ।"
शिव "(पार्वती को उठाते हुए) मेरी शक्ति और कहीं नहीं आप में ही है। आपका स्थान वहां नहीं हमारे साथ है। आइये साथ चलें।"
समाप्त