Ragini Ajay Pathak

Others

4.4  

Ragini Ajay Pathak

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आत्ममंथन!!

आत्ममंथन!!

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"रात भर सरिताजी आत्ममंथन करती रही। अपनी पूरी ज़िन्दगी के सभी पन्नों का कि उन्होंने जीवन मे क्या खोया क्या पाया?"

"किसके लिए पूरी जिंदगी समझौते किये और क्यों?सच ही तो है बिना माँ के भी तो बच्चे पलते है। और बच्चो को पाल पोष कर बड़ा करना तो हर मां का कर्तव्य है। तो उसने कौन सा अनोखा काम किया?"

पूरी रात अकेली बालकनी में कुर्सी पर बैठी सोचते सोचते भोर हो गयी।आज तो वो रोना चाहती थी लेकिन रो भी नहींं पा रही थी। क्योंकि आंखों में आंसू भी नहींं आ रहे थे। शायद बच्चो और पति की तरह उन्हें भी उनका साथ गंवारा नहींं था।

सरिताजी के बेटे अखिल और पति सुरेश के कहे कड़वे शब्द उनके कानो में रात भर गूँजते रहे।

अखिल ने माँ की तरफ उंगली दिखाते हुए गुस्से में कहा,"क्या किया है आपने माँ हमारे लिए ? बच्चों को जन्म देकर उन्हें पाल पोष कर बड़ा करना ये तो हर औरत करती है। ये तो पूरी दुनिया मे सभी करते है। इस घर मे एक खाना बनाना काम है और वो भी आपको भारी लगता है घर मे झाड़ू पोछे बर्तन के लिए बाई आती है और आप समय से हमारा टिफिन भी नहीं बना सकती। शुभि की बराबरी करती है। आप टीवी सीरियल की तरह सास बहू खेल रही है घर मे।।।।तो ये मत भूलिए मां की शुभि आपकी तरह हाउस वाइफ नहीं है। वर्किंग वीमेन है। आपको तो शर्म आनी चाहिए"

तभी पीछे से सुरेश जी बोल पड़े। "अरे!बेटा तू किसको समझा रहा है? ये क्या जाने पैसों और पढ़ाई की कीमत? इनको तो बस जुबान चलाना आता है। और खुद को महान दिखाना बस। जब बाहर चार पैसे जाकर कमाए ,तब पता चलेगा।कि कितनी मेहनत किस काम मे लगती है? घर मे बैठकर रोटी बनाना जितना आसान नहीं है रोटी कमाना।"

"लेकिन इसकी तो अक्ल ही घुटनों में है। मेरी तो पूरी जिंदगी ही खराब हो गयी इनसे विवाह करके। "

4 माह की पोती खुशी को गोद मे लिए सरिताजी किसी गुनहगार की भांति सबके दोष सुन रही थी लेकिन खामोशी की चादर ऐसी ओढ़े हुए थी। जैसे उनके भीतर कोई तूफान चल रहा हो।

बहू शुभि की बड़ी बड़ी घूरती नजरें जैसे उनको खा जाने के लिए तैयार थी। वो भी सुनाने में कहाँ पीछे रहने वाली थी? उसे तो बस मौका चाहिए होता है।

उसने भी कहा,"माँजी सच ही कहते है लोग की सास कभी माँ नहीं बन सकती।ये बात आपने आज साबित कर दी।"

किसी ने उनकी बात पूरी नहीं सुनी। उनकी तकलीफ नहीं जाननी चाही की आखिर उन्होंने सुबह उठकर टिफिन क्यों नही बनाया?सीधा उनको फरमान सुना दिया गया।

और सच ही तो कह रहे है शुभी और अखिल,जब मैं पति की ही नजरो में सही नहीं हूँ तो बेटे बहू से क्या उम्मीद करूँ ?

सरिताजी और सुरेशजी की शादी हुए पूरे 30 साल हो चुके थे। महज 17 साल की उम्र में उनकी शादी हो गयी थी।और 20 साल पूरा करते करते दो बच्चे एक बेटा और एक बेटी रुचि उनकी गोद मे थे।सुरेशजी का व्यवहार शुरू से ही सरिताजी के प्रति अच्छा नहीं था। वो घर खर्च तक के पैसे उनके हाथों में ना देते। सरिताजी को मायके से भी कोई सपोर्ट नहीं था।

सुरेशजी पैसों से जुड़े हर काम स्वयं करते। उनका मानना था कि औरतें खुद तो कोई काम करती नहीं। लेकिन घर खर्च के बहाने अपने पतियों से झूठ बोलकर पैसे ऐंठ लेती है। जीवन भर पति और सास ससुर के जुल्म और ताने सुने क्योंकि उन्हें यकीन था कि बेटा बड़ा होकर उनकी तकलीफ़ समझेगा। लेकिन बेटा तकलीफ़ समझने की जगह उल्टा उन्हें और तकलीफ देने लगा।

तभी उनके फोन पर उनकी चचेरी बहन सुचि का फोन आया। औपचारिक बातचीत के बाद बातों बातों में उसने सरिताजी को बताया कि उनका बेटा नया व्यवसाय शुरू कर रहा है, कपड़ों का जिसमें उसे कुछ महिलाओं की जरूरत है। जो सिलाई जानती हो। कोई नजर में हो तो बताना।इतना सुनते जैसे उन्हें अपने दिशाहीन जीवन मे दिशा नजर आने लगी।

उन्होंने सुचि से कहा,"सुचि क्या मैं आज तुझसे मिल सकती हूँ? और तुझे ऐतराज ना हो तो क्या मैं सिलाई का काम कर सकती हूँ तेरी फैक्ट्री में।"

सूचि,"दीदी आप कैसी बातें कर रही हो? मुझे तो खुशी होगी। अगर आप काम करो तो।लेकिन क्या जीजाजी तैयार होंगे।आपके घर मे किसी को कोई ऐतराज हुआ तो।"

सरिताजी,"किसी को कोई एतराज़ नहीं होगा। मैं घर आती हूँ। फिर बात करती हूँ।"

सरिताजी जी ने दीवाल की तरफ नजर घुमाया देखा तो घड़ी में सुबह के सात बजे थे। रविवार का दिन होने से सब सो रहे थे। उनको पता था कि कोई सुबह नौ बजे से पहले नहीं उठने वाला।

वो फटाफट उठकर नहा धोकर तैयार हुई। और अपना पर्स लेकर चेचरी बहन के घर जाने लगी। उनकी बहन उन्ही के शहर में रहती थी इसलिए उन्होंने फोन पर बात करने की बजाय सामने बात करना उचित समझा।

तभी सुरेश जी आंखे मिजते हुए हाल के सोफे पर आकर बैठे और कहा "ये कहाँ सुबह सुबह हीरोइन बनकर जा रही हो? लोग तो 60 की उम्र होने पर सठियाते है तुम पहले ही पागल हो गयी। जाओ जाकर चाय बनाकर लाओ। अखिल और शुभि भी आते होंगे उन्हें भी उनकी ग्रीन टी दे दो बनाकर।"

इतने में शुभि और अखिल भी आ गए।

तब सरिताजी ने कहा "मैं जा रही हूं अपने लिए रोटी और सम्मान कमाने। क्योंकि घर मे तो खाना बनाने के अलावा कोई और काम है नहीं? तो आप सब अब मिलकर देख लो,क्योंकि घर तो आप सबका भी है।"

अखिल,"ये कैसी सुबह सुबह बहकी बहकी बातें करने लगी माँ?इस उम्र में अब कौन सा काम मिलेगा आपको?चुपचाप घर मे रहिए और बाहर जाकर हमारी इज्जत का तमाशा मत बनाइये। इसे हमने बहुत मेहनत से कमाया है इसे हम खोना नहीं चाहते।"

सरिताजी "सही कह रहे हो बेटा?इतने साल चुपचाप इस घर मे अपनी इज्जत का तमाशा बनते इसीलिए देखती रही ताकि तुम्हारी जिंदगी संवर जाए और इस घर का तमाशा ना बने। खुद से पहले इस घर और अपने बच्चों की खुशी के बारे में सोचा। जिसका इनाम तुमने मुझे कल दिया।लेकिन अब और नहीं अब बस। अब और मैं अपने मान सम्मान से समझौता नहीं कर सकती। रही बात मेरे काम की तो बेटा सच्चे मन से ढूंढने पर तो भगवान भी मिल जाते है,काम कौन सी बड़ी चीज है। और ये उम्र सिर्फ एक नम्बर है जो कभी आपके काम मे बाधक नहीं बनती। काम के लिए तो बस हिम्मत और लगन की जरूरत होती है।"

और हाँ तुमने कल बिल्कुल ठीक कहा था कि बच्चों को जन्म देने से लेकर उनका पालन पोषण सभी औरतें करती है। तो अब खुशी की सारी जिम्मेदारी शुभि की हुई। क्योंकि वो भी तो मां है।

मैं चलती हूं। मुझे देर हो रही है। आज सरिताजी ने परिवार की जिम्मेदारियों से खुद को मुक्त कर दिया था। जिम्मेदारियों को खो कर वो आज स्वयं लिए सम्मान पाने निकल पड़ी थी। दौड़ती भागती सड़को पर।


दूसरा भाग!!

रुचि आज पूरे एक साल बाद विदेश से भारत अपने मायके सबसे मिलने आयी थी। घर पहुंचते सुरेशजी ने उसे गले से लगा लिया। और पूछा,"बेटा बच्चो को साथ लेकर क्यों नही आयी"?

पापा इस बार मैं सिर्फ आप लोगो के साथ सारी जिम्मेदारियों से मुक्त होकर समय बिताने आयी हुँ। इसीलिए बच्चो को साथ लेकर नही आयी। लेकिन "पापा! मां कहां है?"

"अभी तक आयी नही मुझसे मिलने.... कही बाहर गयी है क्या?"

सुरेशजी ने नजरें झुकाते हुए कहा,"अब क्या बताऊँ बेटा तुझे?"

तब तक वहाँ अखिल और शुभि भी आ गए। दोनों रुचि से मिले लेकिन दोनो के चेहरे पर उदासी थी। शायद दोनो एक दूसरे से बात भी नही कर रहे थे। रुचि को उनके बात करने के तरीके और हाव भाव को देखकर लगा। सुरेश जी से लेकर शुभि तक सब बस उसे खुशहाल माहौल दिखाने का और खुश होने का नाटक दिखा रहे थे जो रुचि भली भांति समझ रही थी। रुचि के बार बार सरिताजी के बारे में पूछे गए सवालों को सब टाल जाते।

अगले दिन रविवार था सुबह सुबह जब रुचि उठी तो देखा....की अखिल और शुभि आपस मे झगड़ा कर रहे है। खुशी और घर के कामो को लेकर। दूसरी तरफ आंख पर चश्मा ठीक करते सुरेशजी चाय बनाने के लिए गैस जलाकर चाय के बर्तन चढ़ा रहे थे।

तब तक रुचि ने पास जाकर कहा,"क्या बात है पापा पहली बार आपको चाय बनाते देख रही हूं। आज तो मैं भी पीऊंगी आपके हाँथ की चाय।।।।।काश मां यहाँ होती तो और मजा आता। उनको भी आपके हाथ की चाय पीने के लिए मिल जाती। है ना पापा"

इतना सुनते सुरेशजी की आंखों में आंसू आ गए। और वो आंखों से चश्मा उतार कर दाहिने हांथ से आंसुओ को पोछने लगे। तो रुचि ने कहा,"ये क्या पापा आप तो रोने लगे।"

"अरे नहीं,रो नही रहा हूं बस आंखों में पानी आ गया। लगता है चश्मे का नंबर बढ गया है।"

रुचि ने देखा,"पूरे दिन और घर का काम तीनो लोगो मे बांट कर रखा गया है। सुबह के चाय नाश्ते की जिम्मेदारी सुरेशजी की और लंच शुभि एवं डिनर अखिल की जिम्मेदारी थी साथ ही रात में खुशी के जागने पर जगना भी अखिल और सुरेश जी की जिम्मेदारी थी।"

दो दिन में घर का माहौल देखकर रुचि का दम घुटने लगा।।।उसने कहा,"क्या बात है अखिल और पापा जिस काम को माँ आज तक अकेले करते आयी। कभी उफ्फ तक नही किया उस काम को उनके ना रहने पर सब मिलकर कर रहे है। काश ये सब कुछ माँ के साथ उनके सपोर्ट में भी किया जाता। तो आज इतनी परेशानी नहीं होती।"

"काफी कुछ बदल गया इन एक सालों में है ना अखिल"

अखिल-",तू तो बस जब से आई है प्रवचन ही दिए जा रही है,ये नही की आकर काम मे मदद करें तो बस मेहमानों की तरह नुक्ताचीनी करने बैठ गयी है।"

अखिल तुम शायद भूल रहे हो लेकिन मैं नही भूली की मां के रहते पापा ने हमे कभी घर के काम नही करने दिए। हमेशा यही बोला ये तुम्हारी माँ करेगी। तो अब मेरी आदत बिगड़ गयी है।वैसे भी बेटियां तो मायके में मेहमान ही होती है।"

"माँ माँ हर बात में माँ सुनकर सुनकर कान पक गया है मेरा,ये सब तमाशा उन्ही की वजह से तो हो रहा है। क्या तुझे नहीं पता"अखिल ने फिर गुस्से में झल्लाते हुए कहा

तब तक रुचि ने एक जोरदार तमाचा अखिल के गाल पर दे मारा।

और कहा,"शर्म नही आती तुम लोगो को।।।।।अपनी देवी समान मां पर इल्जाम लगाते हुए। माँ की वजह से ना आज कुछ हो रहा है,ना माँ की वजह से पहले कुछ होता था बल्कि माँ की वजह से ही इस घर की खुशियां और शांति थी,समझे तुम"

जो गुस्सा और जो बात तुम्हे अपनी पत्नी पर निकालना चाहिए था वो गुस्सा तुमने माँ पर निकाला, क्या कहा था तुमने मां से की उन्होंने किया क्या है?

मैं बताती हुँ तुम्हे।।।।।उन्होंने ने इस ईंट पत्थर के मकान को घर बनाने के लिए अपनी नींद, सपने और अपना आत्मसम्मान सब कुछ खो दिया। अपने बच्चो के उज्ज्वल भविष्य के लिए उन्होंने पापा जैसे अहंकारी और गुस्सेल इंसान को बर्दाश्त किया है।

सोचो जरा अगर मां ने भी शुभि की तरह पापा को बार बार पुलिस की धमकी दी होती तो। हमारा भविष्य क्या होता?

जिस घर को तुम लोगो ने अपना कहकर उन्हें घर से निकाल दिया।उस अपमान के बदले के लिए उन्होंने तुम सब पर केस किया होता तब।।।।सोचा है क्या होता?

लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ नही किया। लेकिन आज वो अपने बल और बुद्धि से अपना खोया आत्मसम्मान वापिस पा चुकी है। आज उनके पास सब कुछ है। तुम सोचो और सोचकर देखना की तुमने क्या खोया और क्या पाया अपनी मां को घर से निकाल कर?

उसदिन तुम अपनी पत्नी के टिफिन ना बन पाने के कारण माँ पर चिल्ला पड़े। लेकिन ये जानने की कोशिश नहीं कि की आखिर माँ ने टिफिन क्यों नही बनाया? कही उनकी तबियत तो खराब नही।।।

मैं बताती हुँ उस रात तुम सब जब चैन से सो रहे थे मां पूरी रात खुशी को गोद मे लिए घूमती रही। क्योंकि वो पूरी रात जागकर खेलती रही। और मां तुम सब की नींद ना खराब हो क्योंकि तुम लोगो को ऑफिस जाना होता हैं।इसलिए खुशी को देखती रही। जिसकी वजह से उन्हें एसिडिटी हुई और उन्हें उल्टियां शुरू हो गयी। और सुबह आंख लग गयी। जब उनकी आंख खुली तो तुम सब तैयार होकर उनके ऊपर चिल्ला रहे थे।

पापा आप बहुत अच्छे पिता तो रहे लेकिन एक अच्छे पति कभी नही बन पाए। आप ने भी पूरी उम्र सिर्फ उनका अपमान किया। जिस समय अखिल उनका अपमान कर रहा था आप बजाय अखिल को डांटने के उसका साथ देने लगे मां का अपमान करने में। ये साथ निभाया आपने अपने जीवनसाथी होने का। आपकी लंबी उम्र की खातिर ना जाने मां कितने व्रत रखती है। आपकी एक एक पसन्द ना पसंद का ख्याल हमेशा रखा उन्होंने लेकिन आपने कभी उनका सम्मान नही किया।

"आज सिर्फ खाना बनाने के जिस काम को सब मिलकर कर रहे है। उससे अधिक काम माँ अकेले कर देती थी। क्यों पापा सही कह रही हूं ना मैं।।और हाँ मुझे ये सब बातें मां ने नही बतायी बल्कि सुचि मौसी से पता चली" रुचि ने आज सारी मन की भड़ास निकाल दी और सबको सच का आईना दिखा दिया।

इतना सुनते सुरेशजी फफक कर रो पड़े। और कुर्सी का सहारा लेकर बैठ गए। फिर उन्होंने कहा,"हाँ ,बिटिया तू सही कह रही है। मैंने बहुत गलत किया सरिता के साथ "

रुचि ने कहा,"पापा मैं जा रही हूं अपनी मां और बच्चो के पास।।।माँ ने तो मुझे आप सब को कुछ भी कहने से मना किया था लेकिन आज मुझ से दुबारा मां का अपमान बर्दाश्त नहीं हुआ। मैं तो यहां यही देखने आयी थी कि माँ के बिना आप सब कैसे रह रहे हैं?मुझे लगा आप सब को अपनी गलती का एहसास हुआ होगा। मगर अफसोस...…चलती हूं।"

तभी सुरेशजी ने कहा,"रुक बेटा मैं भी चलूंगा। सरिता से अपने किए की माफी मांगने। जनता हुँ मेरा अपराध माफी के लायक नहीं लेकिन दिल को सुकून तो मिल जाएगा।"

तभी पीछे से अखिल और शुभि भी बोल पड़े हम भी चलेंगे साथ में और मां को मनाकर वापिस घर लाएंगे।

सब एक साथ मिलकर सरिताजी के घर पहुंचे। वहाँ वो बाहर के हाल में औरतों को सिलाई के गुर सीखा रही थी। आज उनके चेहरे पर आत्मविश्वास और आत्मसम्मान का चमक था।

सबको एक साथ देख कर सरिताजी चौक गयी। फिर उन्होंने सबको अंदर बुलाया। उन्होंने सिलाई केंद्र की एक महिला को इशारा किया तो वो जाकर चाय पानी ले कर आयी सबके लिए।

तब अखिल ने खुशी को सरिताजी के गोदी में देते हुए कहा," माँ हम से बहुत बड़ी गलती हो गयी। हम सब आपसे माफी मांगने आये है।"

पीछे से शुभि ने कहा,"हाँ माँजी हम सबको माफ कर दीजिए,और घर चलिए।"

इनसब के बीच सुरेशजी लज्जित नजरो से सिर झुकाये कनखियों से सिर्फ सरिताजी को देखे जा रहे थे।

सरिताजी चुपचाप सबकी बातें सुने जा रही थी तभी सुरेशजी ने कहा,"सरिता अब घर चलो बच्चें कब से कह रहे है?लेकिन माफी मांगने की उनकी हिम्मत नही हुई"

तभी सरिताजी ने मुस्कुराते हुए कहा,"मैं अपने घर मे ही तो हुँ अब मैं यहाँ से कही नही जाऊंगी।"

सरिताजी की बात सुनकर सुरेशजी ने कहा,"तुम यही चाहती हो ना कि मैं सबके सामने अपने किये की माफी मांगू?तो लो मैं तुमसे अपने किये की माफी मांगता हुँ। इस बात को स्वीकार करता हूं कि मैंने तुम्हारे साथ गलत किया।अब तो चलो।"

सरिताजी ने फिर मुस्कुराते हुए कहा,"नहीं जी गलती सिर्फ आपकी नही मेरी भी थी मुझे बहुत पहले ही ये कदम उठाना चाहिए था। क्योंकि मैंने आप सबको अपना अपमान करने का मौका दिया इस लिए आप सब कर पाए। मुझे किसी से माफी नही मंगवानी।"

जिसकी मर्जी हो मेरे साथ यहाँ मेरे इस किराए के छोटे से घर मे रह सकता है। लेकिन मैं यहाँ से कही नही जाऊंगी। बहुत अच्छा लगा आप सब को यहाँ देखकर। जब भी जिसका मन हो वो यहां आकर मिल सकता है। मुझ से लेकिन अब मैं लौटकर वापिस उस घर मे नहीं जाऊंगी।

"ठीक है फिर मैं तो तुम्हारे साथ यही रहूंगा मैं भी कही नही जाने वाला और तुमको चाय अब मैं सुबह बनाकर पिलाऊंगा समझी आखिर क़ानून पत्नी हो हमारी।" सुरेश जी ने सरिताजी का हाथ पकड़कर कहा।

अखिल और शुभि वहाँ से लौटकर घर आ गए। लेकिन अब हर तीज त्यौहार पर उनसे मिलने जाते।

सुरेशजी और सरिताजी अब अपनी जिंदगी की सांझ को खुशहाल जीने का हर प्रयास करते और खुश रहते।



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