सुलझा-सुलझाया किस्सा हो तुम, मगर हम उलझे रहे अपने आप से, सुलझा-सुलझाया किस्सा हो तुम, मगर हम उलझे रहे अपने आप से,
जो कभी कह नहीं सका अपनी आशाओं के उन्वान को वो सिर्फ एक परछाई बनकर मारा मारा फिरता है जो कभी कह नहीं सका अपनी आशाओं के उन्वान को वो सिर्फ एक परछाई बनकर मारा ...
घुटन, शिकस्त, तन्हाई का दौर जब तुम्हें सताएगा… घुटन, शिकस्त, तन्हाई का दौर जब तुम्हें सताएगा…
सीधी सी दिखती थी राह जो मंज़िल की, कदम बढ़ाया, तो क्यों रास्ता धूमिल होने लगा है .... सीधी सी दिखती थी राह जो मंज़िल की, कदम बढ़ाया, तो क्यों रास्ता धूमिल होने लगा ह...