बाँस का पेड़
बाँस का पेड़
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मैं बाँस का वो पेड़ हूं
जिसकी शाखाएं भी बाँस है
फूल - पत्तियाँ भी बाँस
जिसकी जड़े भी बाँस है
वो बाँस जो लड़ता नहीं है
वो बाँस जो झगड़ता नहीं है
वो बाँस जो सिर्फ सुनता है
कभी कह नहीं पाया
अपनी वेदनाओं को
जो कभी कह नहीं सका
अपनी आशाओं के उन्वान को
वो सिर्फ एक परछाई बनकर
मारा मारा फिरता है
आवारा हवाओं सा
वो सिर्फ और सिर्फ
एक बाँस का खोल है
जो हँसता भी बाँस बनकर है
बिखरता भी बाँस बनकर
आप सोच रहे होंगे
बाँस के पेड़ पर
अब गन्ना तो उगेगा नहीं
लेकिन यह बाँस वो बाँस नहीं है
जो किसी के काम आये
यह वो बाँस नहीं है
जिसके वज़ूद से कोई
अपना वज़ूद बनाये
यह बाँस तो कबीर के
उस दोहे जैसा है
जो कहता है
बड़ा हुआ तो क्या हुआ ?
जैसे पेड़ खजूर
आगे क्या कहा जाये
बाँस तो बाँस ही रहेगा..