हमारी संस्कृति और आज का युग हमारी संस्कृति और आज का युग
फ़क़त इक अख़बार सी है। फ़क़त इक अख़बार सी है।
माँ को रद्दी समझकर फेंक आया माँ को रद्दी समझकर फेंक आया
तमाम उम्र रखेंगे इनको उनकी अमानत की तरह। तमाम उम्र रखेंगे इनको उनकी अमानत की तरह।