बरगद की इक डाल पे अकेला उल्टा लटका ज़ालिम, बरगद की इक डाल पे अकेला उल्टा लटका ज़ालिम,
काश जिंदगी सचमुच किताब होती, फाड़ सकता मैं उन लम्हों को काश जिंदगी सचमुच किताब होती, फाड़ सकता मैं उन लम्हों को
फाड़ सकती में उन लम्हों को जिन्होंने मुझे बहुत रुलाया फाड़ सकती में उन लम्हों को जिन्होंने मुझे बहुत रुलाया
इतने सम्मान से मत देखो उसे! इतने सम्मान से मत देखो उसे!
हर हालात में ढल जाए वो जान हो तुम हर हालात में ढल जाए वो जान हो तुम
सुना था मेरा मुखड़ा किताबों में देखकर । एक अक्षर भी तुम पढ़ नही पाती थी ।। सुना था मेरा मुखड़ा किताबों में देखकर । एक अक्षर भी तुम पढ़ नही पाती थी ।।