यह दुरूह कार्य कर, कैसे मुस्करायी होगी तुम। यह दुरूह कार्य कर, कैसे मुस्करायी होगी तुम।
सोचता हूं मैं खुद अपनी खुशियों का कातिल तो नहीं सोचता हूं मैं खुद अपनी खुशियों का कातिल तो नहीं
फ़ाज़िल मुंसिफ तो सिर्फ क़ानून जानता है क़ातिल को मक़तूल का खून पहचानता है जिंदा लाशें ज फ़ाज़िल मुंसिफ तो सिर्फ क़ानून जानता है क़ातिल को मक़तूल का खून पहचानता है ...
उसकी यादों के तिनके से दरिया पार हो जाऊं , वो मंद मंद मुस्काये जब मैं कश्ती संग बह जाऊ उसकी यादों के तिनके से दरिया पार हो जाऊं , वो मंद मंद मुस्काये जब मैं कश्ती स...
क़ातिल बन कर के ज़माने के, ऐसे बैठे हैं जैसे कुछ हुआ ही नहीं है. क़ातिल बन कर के ज़माने के, ऐसे बैठे हैं जैसे कुछ हुआ ही नहीं है.
कुछ नऐ हों तो दीजिये मुझको, जी भर गया है पुराने घावों से।..... कुछ नऐ हों तो दीजिये मुझको, जी भर गया है पुराने घावों से।.....