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Harshit Dwivedi

Abstract

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Harshit Dwivedi

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वो

वो

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वो आदत नहीं, शोख थी मेरा

मैं नादान वो कौफ़ थी मेरा

सुबह की अजान थी,

सौंधी सी शाम थी,


दुआ थी, ईमान थी,

मेरा अल्ला मेरा ताला,

मैं प्यासा वो जाम का प्याला

मेरा गीत, मेरा रियाज़,

मेरी धुन, मेरा साज़।


मैं मोर था, वो बारिश थी मेरी,

एक आखीरी गुज़ारिश थी मेरी,

मैं दर्द था,वो आराम थी,

मेरे सारे अधूरे काम थी।


मैं दिन भर की उलझन,

वो रातों का सुकुं,

मेरे अंदर की आग

मेरा मुक्कमल जुनूं।


मेरा इश्क़, मेरा प्यार थी,

मेरी जीत, मेरी हार थी,

आंखें मुंदूं तो ध्यान थी वो,


जो आंखें खोलूं, हाए! जान थी वो

कानों में घुलती एक

मीठी सी आवाज़ थी

अनकहे, अनसुने हज़ारों राज़ थी।


आज वो बस एक याद है,

वो जाके भी बाद है,

एक मस्त पंछी सी थी वो,

मैं कैद, वो आज़ाद है।


मैं धूल, वो पाक,

मैं सर्द, वो ताप,

मैं सफेद, वो रंग,


वो राजा मैं रंक,

वो ज्ञान, मैं हास्य,

वो हीरा, मैं कांस्य।


मैं मसला, वो जवाब,

एक अधूरा सा ख़्वाब

वो कबूल, मैं इंकार हूं,


खामोशियों का करार हूं,

वो ज़िंदगी है अब, मैं राख़ हूं,

वो मुकम्मल है अब, मैं खाख़ हूं।


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