वो लकीरें..!
वो लकीरें..!
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वो लकीर जिसे दुःख कहते हैं, माँ ने बचपन में ही मिटा दी मेरी,
अपने स्नेह और ममता की चादर सर पर डाल दी मेरी..!
बड़ी ज़ालिम हैं जमाने की गुस्ताख नज़रें,
कहीं नज़र ना लग जाए, माँ ने माथे पर इक बिन्दी लगा दी मेरे..!
जमाना ज़ालिम है मेरे बाग की बुलबुल जरा चलना संभल के,
ये बात मेरे बचपन में ही माँ ने मेरी सिखा दी मुझे..!
बड़ी भोली, बड़ी मासूम सी बुलबुल थी आँगन में माँ के,
हुई जो बिदाई तो होशियारी की चंद चवान्नियाँ मेरी माँ ने हथेली पर मेरे थमा दी मुझे..!!