सर्दी है बेदर्दी
सर्दी है बेदर्दी
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सूरज की लौ मन्द पड़ गई,
चलने लगीं हवाएं सर्द ।
कुहरा पाला पड़े भयंकर,
निर्धन को सर्दी बेदर्द ।।
टप-टप चूती नाक और ,
तन कांप रहा है सर्दी में ।
धूप दिखे ना धीर बंधे ना ,
इस बेदर्दी सर्दी में ।।
खाने और पहनने को जब,
भोजन वस्त्र जुटा ना पाए ।
हो जाए बीमार मौत सर्दी ,
गरीब की बन जाए ।।
सुखी सम्पन्न निरोगी को,
ही यह ऋतु है मनभावन ।
व्यंजन चखें लजीज धारते ,
महंगे वस्त्र सुहावन ।।
पिस्ता काजू बादाम और ,
फाफी की चुस्कियां लेते ।
सर्दी करेगी क्या उनका जो,
जो ए0सी0 का सुख लेते ।।