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Nand Kumar

Others

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Nand Kumar

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सर्दी है बेदर्दी

सर्दी है बेदर्दी

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सूरज की लौ मन्द पड़ गई,

चलने लगीं हवाएं सर्द । 

कुहरा पाला पड़े भयंकर,

निर्धन को सर्दी बेदर्द ।।


टप-टप चूती नाक और , 

तन कांप रहा है सर्दी में ।

धूप दिखे ना धीर बंधे ना ,

इस बेदर्दी सर्दी में ।।


खाने और पहनने को जब,

भोजन वस्त्र जुटा ना पाए । 

हो जाए बीमार मौत सर्दी ,

गरीब की बन जाए ।।


सुखी सम्पन्न निरोगी को,

ही यह ऋतु है मनभावन । 

व्यंजन चखें लजीज धारते , 

महंगे वस्त्र सुहावन ।।


पिस्ता काजू बादाम और , 

फाफी की चुस्कियां लेते । 

सर्दी करेगी क्या उनका जो,

जो ए0सी0 का सुख लेते ।।



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