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Archana Saxena

Others

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Archana Saxena

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सच्ची आज़ादी

सच्ची आज़ादी

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आया दिवस पुनः अति पावन

जब हमने पाई आज़ादी

हर वर्ष मनाते प्रफुल्लित हो 

हम अपना जश्ने आज़ादी


आज जरा इक नज़र करें 

हम अपने अंतर्मन पर भी

क्या सही मायनों में पा ली है

 हमने अपनी वह आज़ादी?


क्या हर बच्चा इस देश का अब

 विद्यालय पढ़ने जाता है?

या अब भी छोटे कन्धों पर

 वह घर का बोझ उठाता है?


क्या देश की वो आधी आबादी

कहलाती है जो नारी

अधिकार उसे क्या सच में मिले

 या अब भी है वह बेचारी?


क्या अब बेटी होने का भी

कोई जश्न मने है हर घर में?

या ताने सुनती अब भी माँ

 है आँसू बहाती कोने में?


क्या घर से निकली बेटी

 अपने शहर में पूरी सुरक्षित है?

या जब तक न वह लौटती है

 माँ पिता के दिल में धकधक है?


क्या अब भी मेरे देश में 

दूध दही की नदियाँ बहती हैं?

या मिलावटी सामग्री से

 जनता अब सेहत खोती है?


बातें कितनी हैं करने को

 और मन में उमड़ते प्रश्न हजार

कब तक अपनी हर कमी के लिए 

दोषी होगी कोई सरकार?


अपने नैतिक कर्तव्यों का

 बीड़ा भी हमें लेना होगा

चारित्रिक पतन की अति न हो

ये भी निश्चित करना होगा


न बदलो अपने देश को तुम

 न कोई व्यवस्था बदलनी है

बस अपने ही चरित्र में थोड़ी

 सी पवित्रता भरनी है


अपने को यदि पावन कर लें

थोड़ा देशप्रेम मन में भर लें

फिर देश हमारा गर्वित हो

और पा ले सच्ची आज़ादी


  


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