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Prem Bajaj

Others

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Prem Bajaj

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रूप तेरा सादा

रूप तेरा सादा

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कितना सादा रूप है तेरा, शांत, निर्मल, निश्छल सा,

लिबास पहनकर स्वेत तू मन को देती सुकून है,

मगर चला कर तीर आंखों से उसी मन को देती चीर है।


ना देख इस तरह तिरछी निगाहों से ये जान ले लेंगी 

मेरी, इस सादे रूप पर मर ना जाऊं कहीं मैं, 

कैसे मैं जाने दूं जान अपनी, इसमें बसी है जान तेरी,


काश बन जाता कंगन तेरे हाथों का, छू लेता बदन तेरा 

इस बहाने से, बस दूर से ही ताका करता हूं, रोक देती है 

पास तू आने से।


काश‌ बन जाता धागा मैं, बन के कपड़ा लिपट जाता बदन से तेरे।

तेरे तन‌ की खुशबू में हर पल नहाया करता, कभी तू

लिपटती मुझसे, कभी मैं तुझे लिपटाया करता।


होता मैं धार कजरे की आंखों में बसा लेती मुझे तुम,

बन जाता गजरा फूलों का बालों मैं लगा लेती तुम।


ना यूं रहा करो गुमसुम, कि दिल की धड़कन हमारी बढ़ जाती है,

कहीं घायल ना हो जाए ये दिल कि इसमें रहती है महबूबा हमारी।



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