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Sheetal Jain

Romance

4.5  

Sheetal Jain

Romance

प्रेम भी अद्भुत है

प्रेम भी अद्भुत है

1 min
338


नेह का आवेग है, नारी सुलभ उन्माद है 

चल पड़ीं सघन वन में,

मेघ कर रहे गर्जना 

यह कैसा अभिसार है,

सच्चे प्यार की क्या यही पहचान है।

 

कमनीय काया, नवनीत सी कोमल

मुख सदृश चंद्रमा, नयनों में शावक की चपलता

चंपा सा गौर वर्ण, पद्म पराग सी सुगंधित 

अधरों में स्निग्धा,राजसिंहनी की गति है पाई

रूप लावण्य यह देख, सर्प भी निकल आए

अठखेलियाँ कर रहे मध्य रात्रि जंगल में 

 तुम तो बेख़बर अपने साजन में।


मिलन की जल्दी है 

या वृक्षों से छिपानी लज्जा है 

कश्मकश में नूपुर बिछड़ी पाँवों से 

मुड मुड़ कर देख रही 

संग रखना ज़रूरी है 

मुश्किल में हैं जान

छोड़ सकती नहीं 

साजन से मिला उपहार है।


प्रतीक्षारत वो भी होगे

 चिंतित और व्याकुल होगे

कुछ तो करो उपाय 

 कहीं प्रातः न हो जाए 

अब तो प्रभु का सहारा है 

यह प्रेम भी कितना अद्भुत है।


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