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Sri Sri Mishra

Inspirational

3  

Sri Sri Mishra

Inspirational

पिता की छांव

पिता की छांव

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मुंडेर पर कौवा उड़ता बोल रहा है जो काँव...

बता रहा है सिर पर तेरे छप्पर सा है पिता की छाँव..

तोतली बोली संग जब चलते थे हम घुटनों के बल..

रोज पक्षी आकर बताते थे जो हैं रिश्ते निश्चल..

रोज पिता जो दाना देते थे उसको..

संस्कार यह डाल बताते थे मुझको..

पूर्वज हैं ये अपमान न करना इनका..

सम्मान सदा देना जो हक है इनका..

समय के साथ जब मैं बड़ा हुआ..

पिता के हौसलों संग चट्टान सा खड़ा हुआ...

राह में आती मुश्किलों को भेदता चला गया..

संघर्ष करते जीवन के अधेड़ उम्र पर खड़ा हुआ..

अचानक ली पिता ने फिर अंतिम श्वास..

रिश्ते के अनमोल खजाने का हुआ ह्रास..

पिता को ना देख मुंडेर पर बैठा कौवा हुआ उदास..

मैं भी रोया वह भी रोया दुख का ये पल हुआ खास..



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