फटी जेब
फटी जेब
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फटी जेब सत कर्मो की
मानवता शर्मसार हो रहा,
खत्म हो रही इंसानियत
नफरत का व्यापार हो रहा।
इंसा है इंसान का दुश्मन
मार-काट को दौड़ रहे,
भूल गए संस्कृति-सभ्यता
अब तो अत्याचार हो रहा।
बंटे हुए सब धर्म-जाति में
मंदिर-मस्जिद पे लड़ते हैं,
भूल गए सब हिंदू-मुस्लिम
सिक्ख-इसाई यार हो रहा।
पथ पर बिखरे पुष्प प्रेम के
मानवता की बगिया हो
आपस में भाईचारा हो
दिल में क्यों तकरार हो रहा।।।।