।। मन और दिल ।।
।। मन और दिल ।।
बूझो क्या होता है अन्तर,
मन और अपने इस दिल में,
हमको तो लगता उतना बस,
जितना ज्ञानी और काबिल में।
मन से होता ज्ञानार्जन है,
दिल से शिक्षा का निष्पादन,
मन से मन जब मिलता हो,
दिल से होता तब अभिवादन।
जो अपने मन की करता है,
वो बस दिल की ही सुनता है,
मन रमता है जिस चीज यहाँ,
दिल वो ही सपने बुनता है ।
मन चंचल है दिल पगला है,
मन कोठरी तो दिल जंगला है,
है मन के हारे जो हार यहाँ,
दिल का तो चांद पे बंगला है।
मन मार के तुम जो करते हो,
इस दिल को बहुत वो दुखता है,
जब जब मन दिल पर भारी,
इस दिल ने बहुत ही भुगता है।
मन आशाओं का है सागर,
दिल से एक एक उम्मीद जुड़ी,
मन किरण उजाले की जीवन,
दिल के हिस्से है बस नींद उड़ी।
मन राम रमा, दिल प्रियतम से,
ढूँढे असीम, एक सिंचता ग़म से,
दोनों की गति बस मृग जैसी,
हैं मरीचिका को दोनों सम से ।
मन है उड़ान दिल स्पंदन,
मन भक्ति है दिल है वंदन,
जो मन से ठाने और दिल झोंके,
जग करता उनका अभिनंदन ।
जग करता उनका अभिनंदन ।।