मैं एक नारी हूँ
मैं एक नारी हूँ


मैं एक नारी हूँ.....
समाज में आज भी अबला, बेचारी हूँ
वैसे तो
जीवन की जननी मैं कहलाती हूँ
क्यूँ फिर भी पग पग छली जाती हूँ
क्यूँ भूल रहा ए मानव तूने मेरी
दुग्ध वाहिनियों से अपना बचपन सींचा है
आज ममता और त्याग के रूप को भूल
ये कैसा अपना स्वरूप खींचा है
मैं एक नारी हूँ...
क्या समाज पर इतनी भारी हूँ...
त्याग की पन्ना धाय माएँ आज भी समाज में रहती हैं
जो तुम्हें बाल्यकाल से युवावस्था तक आँखो से
ओझल ना होने देती हैं
सोचो बूढ़ी माँ वृद्धाआश्रम में कैसे बच्चों बिना जी लेती हैं
उसके त्याग और परोपकार को समझ जाओ
काँच से बनी दुआओं की पोटली को वापस घर ले आओ
तुम्हारी ठोकर से तो टूटेगी पर तुमसे कभी ना रूठेगी
मैं एक नारी हूँ...
सुकन्या हूँ ..पर शिकारियों से हारी हूँ..
बेटी जैसी कन्या को तू वहशी नजर से ताँक रहा
कपड़ों के टुकड़ों को छोटा बता उनके अंदर झांक रहा
साड़ी में भी वो लाचार बुढ़ापा दादी की याद दिलाता है
फिर कैसे तेरे अंदर उसे कुचलने का दुस्साहस आ जाता है
मत दे ऐसे कर्मों को अंजाम, इनसानियत को चीरते हो खुलेआम
ये जीवन पहिया है जो किया है लौटकर वापस आता है
मैं एक नारी हूँ
किसी का प्रेम ..तो किसी की प्यारी हूँ..
तेरी कलाई की राखी से बहन के प्यार की सौंध आती है
फिर क्यूँ तेरी मोहब्बत को ना अपनाने वाली पर
तेजाब की बोतल फेंकी जाती है
उस राधा कृष्णा का प्रेम देख, विवाह ना होने पर भी
आज दोनों की मूरत साथ ही आती है
मीरा,कृष्णा की मूरत ले भक्ति में लीन रहती थी
राधा संग देख फिर भी दिन रात गिरधर गीत ही कहती थी
मैं एक नारी हूँ
महकाती घर आँगन फुलवारी हूँ..
पत्नी के समर्पण की परिभाषा समझ क्यूँ नही आती है
आज भी सीता माता जैसी अग्नि परीक्षा करायी जाती है
आज कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाली स्त्री भी
शोषण व छल कपट का शिकार पायी जाती है
समाज से इतना कहना चाहती हूँ
बंद कर दो माँ, बहन, पत्नी, बेटी को छलना
ये देवी के अवतार हैं जो बिन कहे सब समझ जाती है
कर देती है ये भी नरसंहार जब चण्डी बन जाती है
हम दूजे को दोष देते हैं क्या स्वयं को बदल नही सकते हैं
चलो सब अपने अपने घरों से सम्मान की शुरुआत करते हैं
ना हो नारी सशक्तिकरण की आवश्यकता
ना हो कोई नारी प्रताड़ित
आज ऐसी गाथा हम मिलकर रचते हैं