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priyanka gahalaut

Others

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मातृत्व

मातृत्व

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दो जामुनी रेखाएं देख दिल के सफहे पे

अंकित हो गया एक बिंदु..

जो शुरुआत थीं मातृत्व की कविता लिखने की,

यूँ लगा के कुछ रंगीन तितलियाँ..

गुदगुदा रही अपने परों से नीले आसमान को..

कुछ ऐसी ही हरकत फिर मुझे मेरे..

अंतस में अब धीरे धीरे महसूस होने लगी..

उस बिंदु पे उगते महसूस किए वो नन्हे नन्हे अंग प्रत्यंग..

जिनसे तुम जन्म के बाद अपनी अठखेलियां करोगे...

मैंने लंबी अलसाई दोपहरी में आँखें मूंद के

देखा तुम्हें भी संग अपने उबासियाँ भरते...

आधी रात अक्सर तुम मचल के, कभी कभी

ठोकर सी मारते मुझे गर्भ से.. लगता कहते हो..

सवेरा कब होगा!!


फिर वो दिन आया जब, पीड़ा के आँचल से निकल

मैंने गुनगुना सा एहसास तुम्हारा अपनी बांहों में

भरा, बाहरी रोशनी से चकाचौंध होती तुम्हारी आँखें..

क्षुधा से फड़कते होंठों की बेचैनियां..

और मेरी उँगली को पकड़ती तुम्हारी नन्ही हथेली...

उस पल से जारी है तुम्हारी हर हरकत पे

मेरा तुम्हारे संग संग खिलखिलाना...

मेरा तुम्हारे पास ना होने से तड़प के तुम्हारा कृदन..

और साथ मेरी आँखें भी भर आना!!


तुतला के मम्मा कहने के बाद प्रथम दो दंत कोपल

खिलना...अपनी पसंद की खट्टी मीठी

टॉफियों के चटकारे ले कर मुँह बनाना..

किसी अनजान के आते ही करीब, तुम्हारा आँखें चुरा के

मेरे आगोश में छिपना...नींद के झोंको से झुकती पलकें

लिए मेरे कांधे पर सिर रखना..

कोई एक पल हो तो लिखा जाए,

मैंने तुम्हें देखे बगैर भी हर भाव पढ़ा है तुम्हारा !!



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