माँ
माँ
माँ जैसे हस्ताक्षर उस परमात्मा का, जो हमें एक पहचान देती।
खुद दर्द सह इतने एक बच्चे को जन्म वो देती, रूप वो जैसे एक भगवान का ।
माँ जैसे हस्ताक्षर उस परमात्मा का, जो हमें पहचान देती।
वो सींचती बच्चे को धरती के जैसे, खुद अक्सर भूखी रह वो हमें जरूरत का पहले हर सामान देती ।
माँ जैसे हस्ताक्षर उस परमात्मा का, जो हमें पहचान देती
रात रात वो जाग बच्चे को सुकून की नींद देती, जो हुए बड़े तो हमसे ज्यादा वो हमारे लिए परेशान होती।
माँ जैसे हस्ताक्षर उस परमात्मा का, जो हमें पहचान देती।
माँ गुरु पहली बच्चे की जो संस्कारों और विचारों कि एक राह दे हमें जैसे देखने को एक झन देती।
माँ जैसे हस्ताक्षर उस परमात्मा का, जो हमें पहचान देती।
सब समझते शब्दों की भाषा जो समझे खामोशी भी बच्चे वो एक बस माँ ही होती ।
माँ जैसे हस्ताक्षर उस परमात्मा का, जो हमें पहचान देती।
दर्द सहती वो हजारों फिर भी ना वो कुछ कहती, बच्चों को खुश देख होती खुश,
बच्चों की तरक्की में वो जैसे एक नई जिंदगी जीती।
माँ जैसे हस्ताक्षर उस परमात्मा का, जो हमें पहचान देती।
कभी दोस्त कभी वो गुरू बन जाती, करती वो इतना कुछ हमारे लिए
फिर भी कभी ना उसे जैसे उसे कोई थकान होती।
माँ जैसे हस्ताक्षर उस परमात्मा का, जो हमें पहचान देती।
खुद सहती दर्द हजारों फिर भी बच्चों को जैसे वो एक मुस्कान देती।
माँ जैसे हस्ताक्षर उस परमात्मा का, जो हमे पहचान देती।
यूं तो वो माँ बच्चों की पर खुशियां वो बांटती पूरे परिवार को,
खुद ना दिखने वाला धागा बन हमें बांधती एक मोती की माला के जैसे।
माँ जैसे हस्ताक्षर उस परमात्मा का, जो हमें पहचान देती।
कभी वो सीढ़ी बन जैसे राह देती,
कभी मुरझाए चेहरों पर हम सबको एक प्यार भरी मुस्कान देती।
माँ जैसे हस्ताक्षर उस परमात्मा का, जो हमें पहचान देती।
माँ होती है कुछ ऐसी कितने वो त्याग करती हर उम्र में, तभी कहते शायद माँ के कदमों जन्नत होती।
माँ जैसे हस्ताक्षर उस परमात्मा का, जो हमें पहचान देती।
माँ होती ही मूरत ममता की, जो सब कुछ करती पर फिर भी लबों से कभी उफ्फ ना करती।
माँ जैसे हस्ताक्षर उस परमात्मा का जो हमें एक पहचान देती।