लेखन
लेखन
मैं अपनी कलम को त्रासदी में नहीं बदलना चाहती,
लेकिन किन्हीं चंद शब्दों के लिए,
अपने लेखन का सौदा भी नहीं करना चाहती।
मेरी कलम में जो सच्चाई है,
वह सामने तो हर हाल में आएगी ही
और किसी न किसी तरह का बदलाव लाएगी भी।
ऐसा लिख के भी है किसका एहसान जताना,
जब ज़िन्दगी में यातनाओं से बेहतर और कुछ भी नहीं बेहतर पाना।
लेखन केवल कर्म है मेरा,
और कलम है उसका आधार
किसी ग़ुलामी से तो बेहतर ही है,
खुल के दिल की कहानी को व्यक्त कर पाना।
ऐसे भी लिख के किसके ऊपर है एहसान जताना,
जब शब्दों के जाल में सही शब्द चुन रहा हो दीवाना?
कुछ भी धुंधला नहीं है यहाँ,
सब बारीक़ है और समेटा हुआ।
फ़ैल जाये चाहे स्याही,
मगर कभी न हो इस पे झूठ का अहंकार भारी।