कविता वक्त की दहलीज प
कविता वक्त की दहलीज प
1 min
282
वक्त की दहलीज पर
कदम आ कर ठहर गए
यादों का पिंजरा खोल कर
गम के पलों को छोड़ कर
आगे कदम मंजिल की ओर
खुद ही खुद जो उठ गए
खुशियों की बैसाखियों से
वक्त को गले लगा
कदम दर कदम चले
ठोकर लगी तो रास्ते के
पत्थर ने पैगाम दिया
हिम्मत से कर ले सामना
है वक्त का तकाज़ा यही
आसान नहीं हैं ज़िंदगी के
यह ऊबड़ खुबड़ रास्ते
वक्त से कर दोस्ती
मंजिल को पाना है अगर
न सोच क्या खोया तूने
जो पास है कर शुक्रिया
सांस जब तक चल रही
समझ ले वक्त है तेरा
न वक्त को कह अच्छा बुरा
यही वक्त तेरा है खुदा
कल और कल को छोड़
जी ले जो वक्त आज है तेरा।