जिंदगी के साथ
जिंदगी के साथ
जिंदगी तुझसे क्या छुपाऊं
तूने तो इस खुली किताब को पढ़ा है
मिल नहीं रही मंजिल अपनी
पर दिल तो अपनी जिद पे अड़ा है
बहुत सिखा हैं मैंने भी
गिर कर उठना और फिर गिरना
अब खुद को सुधार रही हूं
इस हार और जीत से कैसा डरना
मैं जानती हूं कि तेरा हाथ है
मुझे नई चीजों को सिखाने में
मैं मानती हूं तेरा साथ है
मुझे नए रास्तों को दिखाने में
एक ऐसा भी वक्त है कि
किसी से शिकायत करती नहीं हूं
जहां भी अपमान लगता है
अब वहां मैं रहती नहीं हूं
हां यह भी सच है
अब कुछ भी नहीं मेरे हाथ है
मेरी जिंदगी का खेल भी
अब मेरी जिंदगी के साथ है।