जब छोड़ ही जाना था मझधार में
जब छोड़ ही जाना था मझधार में
जब छोड़ जाना ही था मझधार में साथ चलने का वादा तो न करते,
जब ऐसे बेवफ़ाई ही करनी थी तुम्हें हमसे तुम मोहब्बत तो न करते,
वफ़ा तो निभाते उस इकरार का इज़हार का जो तुमने हर पल किया,
कहकर तो देखते हम खुद बदल लेते अपनी राहें यूँ दिल तो न तोड़ते,
प्यार से संजोए कितने ख़्वाब इन पलकों में हर ख़्वाब में तुम शामिल,
काश! मिल जाती ख़्वाब की ताबीर तन्हाई का ये मंजर तो न देखते,
कितने वादे कितनी कसमें साथ बिताए थे कितने खूबसूरत वो लम्हें,
कह देते पहले ही हमसे कि ये मोहब्बत नहीं यूँ छलावा तो ना करते,
वो हर मुस्कुराहट पर तुम्हारा यूँ मुस्कुराना मुलाकातों के बहाने ढूँढना,
काश! पढ़ लेते जो झूठ तुम्हारी आँखों में दिल पे ये ज़ख्म तो न खाते,
वफ़ा-ए-मोहब्बत में बेवफ़ाई क्या खूब ये सौगात क़िस्मत ने दी है हमें,
बदल सकते किस्मत की लकीरों को लम्हे आज यूँ ख़ामोश तो न होते,
हमराही बन साथ चलो फ़क़त यही तो चाहा तुमने तो राह ही बदल दी,
काश! हम मिले ही ना होते कभी तुम्हारी याद में यूँ अश्क तो न बहाते।