इंसानियत
इंसानियत
1 min
230
तोड़ सको तो
तोड़ दो
इंसानियत का दिल
मरोड़ दो
उन संतृप्त भावनाओं को
जो मानवीय जीवन मूल्यों की
स्थापना का आधार है
खोल दो उन
बन्द खिड़कियों को
जिन्होंने इस वहशी
और भयावह तूफान को
किसी तरह भीतर आने से
रोक रखा है
बचा रखा है
इन्ही दीवारों की ओट ने
इंसानियत को लहूलुहान होने से
मगर अब क्या?
हो जाने दो बर्बाद
इस आधार को
जो मानवता की एकमात्र
मशाल बनकर हम इंसानों में
अपनी प्रेम लौ के अलौकिक
प्रकाश को हमारे भीतर
उड़ेलता रहा है...
