हृदय में है यह उद्घोषित
हृदय में है यह उद्घोषित
मेरे ह्रदय में है वो सदा सर्वदा संचित ,
एक दिवास्वप्न है आज भी अघोषित !
नयन गर्भ में भी है एक स्वप्न पोषित ,
भ्रामक उजालों से निरंतर वो शोषित !
स्वर बाण से वो है विदिर्न आच्छादित ,
कभी वो क्रोधित है तो कभी है क्रंदित !
पर सार पूर्ण है वह और अनुशासित ,
द्रवित , कल्पित और मुदित,अनुमुद्रित !
ह्रदयतल में लोहित,परन्तु अनुमोदित ,
अर्पित,समर्पित और बेहद अल्पपूरित !
निंद्रा लोक से जगत में हुआ सत्यापित ,
संयोजित,संकलित मेरे नयन में संग्रहित !
मेरे नयनग्राम में बरसों से है आशातीत ,
जाने कब होगी मेरी यह इच्छा प्रस्फुटित !
नारी को मिले मान,ना माना जाए दोषित ,
मेरे ह्रदय में है ये एक दिवास्वप्न अघोषित !