एक सवाल...
एक सवाल...
ओ मानव !
तू क्यों जंगल में आग लगाता है?
यह तो घर है पूर्वजों का
सदियों से तुम्हारा नाता है।
तू क्यों जंगल में आग लगाता है?
माना मादकता महुए की
मन को बहुत रिझाती है।
टप टप चूने वाले फूलों से
थोड़ी रकम मिल जाती है।
इन्हें चुनने को जब तुम सूखे
पत्तों में आग लगाते हो,
कितनों का जीवन जल जाता है।
तू क्यों जंगल में आग लगाता है?
कब समझेगा तू ये सूखे पत्ते
जंगल के उन मजदूरों का भोजन हैं,
जिन असंख्य कीटों का प्रकृति ने
स्वयं किया नियोजन है।
यही पत्ते खाकर वह
टनों खाद बनाते हैं,
और असंख्य छिद्र बनाकर
धरती में घुस जाते हैं।
मिट्टी होती है उर्वर और
वर्षा का जल भीतर समाता है।
तू क्यों जंगल में आग लगाता है?
निरीह श्रमिकों की नृशंस हत्या का
पाप अपने सर उठाता है।
तू क्यों जंगल में आग लगाता है?
सोचा है ! उस आग में
कितने बच्चे जल जाते है।
उन पेड़ों के भ्रूण जो पड़े
बीजों के गर्भ में रहते,
वे भी काल कवलित हो जाते हैं।
रे मूरख तू सिर्फ पत्ते नहीं,
अपना भविष्य भी जलाता है।
तू क्यों जंगल में आग लगाता है?