हिंदी कविता की विकास - यात्रा पर बारह छन्द
हिंदी कविता की विकास - यात्रा पर बारह छन्द
हिंदी भूषण के छन्द हैं,
सवैये हैं चंद वरदाई के।
हिंदी है तीर पृथ्वी राज का
भेदती छाती गौरी आतताई के।
हिंदी है सूर तुलसी की भक्ति,
उलटबासियाँ संत कबीर की।
हिंदी है दोहे रहीम रसखान के
और शायरी ग़ालिब मीर की।
हिंदी मीरा के गीतों में है
छंदों में संत रैदास के।
हिंदी रमानंद की कुटिया,
गायन में स्वामी हरिदास के।
भारतेंदु हरिश्चन्द्र ने किया
खड़ी बोली का अनुसंधान।
हिंदी की सरिता बनी गंगा,
बह चली सर्वत्र वेगवान।
हिंदी राणा के भालों में
मेवाड़ की पावन माटी में।
हिंदी है श्याम नारायण की,
रक्त - सरोवर हल्दी घाटी में।
हिंदी है झाँसी की धरती
और लक्ष्मीबाई की तलवार।
सुभद्रा कुमारी चौहान के,
छंदों से गूंजी थी ललकार।
प्रेम के लिए प्रेम की भाषा,
अरि के लिए अंगार है, हिंदी
सियारों की हुआ हुआ का,
उत्तर सिंहनाद हुंकार है, हिंदी।
हिंदी कोमल पंत और
करुणा महादेवी की।
जयशंकर की कामायनी,
निराला की जूही की कली।
हिंदी है फक्कड़ नागार्जुन सी
और दिनकर की हुंकार भरी।
हिंदी मैथिली शरण गुप्त की,
साकेत, पंचवटी सी संस्कार भरी।
हिंदी नीरज के गीतों में,
बच्चन के रुबाइयों की मधुशाला।
माखन, अटल का देश राग,
जानकी बल्लभ की राधा बाला।
अन्य भाषाओं के मनके से
बनती है हिन्दी की माला।
भारतीयता का साकार रूप
हिंदी में लक्षित माँ वाला।
माँ आँचल की छाँव देकर
होती रही विभोर है।
भारतीय भाषाओं का विकास हो,
स्नेह का नहीं ओर छोर है।