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Surendra Sharma

Abstract Inspirational Others

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Surendra Sharma

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हे ग्राम-देवता तुम्हें नमन

हे ग्राम-देवता तुम्हें नमन

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हे ग्राम-देवता तुम्हें नमन।

तेरे खेतों से बढ़कर अब नहीं मुझ को मेरा मधुबन।  

               हे ग्राम-देवता तुम्हें नमन।


जब दुनियाँ सोती रहती है तू खेतों में होता है।

माथे पर तेरे देख पसीना मेहनत के मोती बोता है।

भूख भार सारी दुनियाँ का खुद अपने सिर ढोता है।

पेट सभी का भरने वाला फिर क्यों भूखा सोता है?

तन तेरा मैला सा दिखता, है निश्छल निर्मल तेरा मन।

                  हे ग्राम-देवता तुम्हें नमन।


मिले पसीना जब खेतों में तब फसलें लहलहाती हैं।

बे मौसम की बारिश लेकिन वज्रपात कर जाती है।

बची फसल पर साहूकार की फिर नजरे लग जाती है।

कभी-कभी तो पकने से भी पहले फसलें कट जाती हैं।

तब हृदय की सारी पीड़ा आँखों से कह देता है मन।

                हे ग्राम-देवता तुम्हें नमन।


आभिजात्य जो वर्ग हमारा जब ए सी में सोता है।

तब तप करता मेरा तपस्वी खलिहानों में होता है।

कभी कर्म का फल मिल जाता,कभी भाग्य पर रोता है।

अन्नदाता कहलाने वाला क्यों बेबस इतना होता है?

फूलों पर अधिकार नहीं है,तेरा कैसे हुआ चमन?

               हे ग्राम देवता तुम्हें नमन।


जब तक फसलें थी खेतों में, फसलें थी सब हरी भरी।

मंडी में जब बिकने आई, फसलें लगती मरी मरी।

मेहनतकश की मेहनत देखो खड़ी हुई है डरी डरी।

उसी फसल से व्यापारी की जेबें लगती भरी भरी।

आभास तुझे नहीं हो पाया है,कैसा शीत है और तपन।                              

                 हे ग्राम-देवता तुम्हें नमन।


जब तक तेरी फसलों का तुझे दाम नहीं मिल पाएगा।

जब तक तेरी मेहनत को सम्मान नहीं मिल पाएगा।

जब तक तेरा नाम न होगा जन गण मन के गानों में।

तब तक आकर मैं गाऊँगा खेतों में खलिहानों में।

खुशहाल यदि तू हो जाए, खुशहाल रहेगा मेरा वतन।

                हे ग्राम-देवता तुम्हें नमन।


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