गुनहगार हुए हम खुद को पाक दिखाने में
गुनहगार हुए हम खुद को पाक दिखाने में
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गुनहगार हुए हम खुद को पाक दिखाने में
क़त्ल फूलों का किया पत्थरों को मनाने में
कभी रफ़ू, कभी सिलाई, कभी चस्पा किया
कितने बहाने किए चाक गरेबाँ बनाने में
एक दीया किसी की झोपड़ी में जलाया नहीं
शर्म नहीं आती क्या तुम्हे बस्तीयां जलाने में
दिल का दर्द मगर किसने बाँटा हैं यहाँ पर
हमदर्द तो बहुत मिले हमें इसी जमाने में
ये सनम तेरी फ़ितरत भी शाही से कम नहीं
बड़ा मजा आता है तुम्हे भी दिल दुखाने में
हमने भी कहां रहम किया खुद पर धरम
बदन छन्नी कर लिया गुलों से दिल लगाने में
