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संदीप सिंधवाल

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संदीप सिंधवाल

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ग़ज़ल

ग़ज़ल

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बैठा रखा है


चोरी करके बाहर पहरेदार बैठा रखा है

हजारों में चुनकर ईमानदार बैठा रखा है।


एक चकाचौंध बताती कि तुम कौन हो

तसल्ली भर से इज्जतदार बैठा रखा है।


हर एक राज पर बस चुप्पी साधे रखे 

हलाली के वास्ते कर्ज़दार बैठा रखा है।


एक मतलब के लिए हो तुम किसी के

आंखे बंद कर तलबदार बैठा रखा है।


दुनिया की समझ नहीं उन्हें 'सिंधवाल'

समझाने को समझदार बैठा रखा है।



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