गाये मन मेरा बंजारा
गाये मन मेरा बंजारा
ढलते.. ढलते.. ढलते चंंदा
ऐसे ही ढल जायेगा
नयी भोर का हरकारा
अरुण रश्मि बरसायेगा
नभ को नाना रंगों से किस चितेरे ने संवारा
गाये मन मेरा बंजारा...
अलि उत्पल के मद्यपान में
मारा जायेगा बेचारा
चकवा चंंदा के मोह में
चिर विछोह का मारा - मारा
आजाद गगन से प्यारी लागे प्रीत की ये कारा
गाये मन मेरा बंजारा...
कस्तूरी गंंध से मस्त हिरण
वन वन फिरता है बौराया
भरमाया-सा समझ ना पाये
ये है उसका ही हमसाया
है धरती के कण-कण में तेरा ही पसारा
गाये मन मेरा बंजारा...
जो है मुझमें वो ही सब में
जब समझ पायेगा जग सारा
मिट जायेगा तमस भेद
दिसि-दिसि फैलेगा उजियारा
सत्य-शिव-सुंदर का चहूँ ओर विस्तारा
गाये मन मेरा बंजारा...
भू-उर सोये अंकुर
नभ-वारि से ले अँगड़ाई
फैली चारों ओर हरीतिमा-सी
धरती की तरुणाई
तृषित धरा पर बरसे मेेेघों की जलधारा
गाये मन मेरा बंजारा...