एक बहुत बुरा ख्वाब
एक बहुत बुरा ख्वाब


एक बुरे ख्वाब की परिभाषा ना मुझे पहले समझ आती थी
ना मुझे आज समझ आती है
किसे कहते हैं बुरा ख्वाब जो हमारे साथ हो रहा है?
या जो समाज में हो रहा है अजीब सी कश्मकश में जी रहे है हम
रोज एक बुरे ख्वाब का सामना कर रहे हैं हम
कहां है सुरक्षित हर इंसान ?
अब इसी सवाल को लेकर रोज बवाल कर रहे हैं हम
लड़कियों को पैदा करने से डर रहे हैं हम
सुबह उठकर बाहर जाने से डर रहे हैं,
इससे बुरा और क्या होगा आज इंसान को इंसान की तरफ देख भी नहीं रहे है हम
बुरे ख्वाब से भी ज्यादा पुरी हमारी हकीकत हो चली है
हर कदम पर डरता है दिल बाहर निकलने से
हर कदम पर डर लगता है किसी को अकेला छोड़ने से
ऐसा तो हमने ख्वाब में भी नहीं सोचा था
जैसी यह हकीकत है दर्द है
लबों पर खुशी कहीं खो गई है आज
हर लड़की बेबस बेसहारा हो गई
किस पर भरोसा करें
ना घर में सुरक्षित
ना बाहर सुरक्षित
कैसे यू जिंदगी अदा करें
बुरे ख्वाब की कल्पना भी नहीं की होगी किसी ने ऐसी
जैसी आजकल की हकीकत हो गई है
इंसाफ के लिए लड़े तो आज वह समाज है
जहां निर्दोष जेल में और बेगुनाह सड़कों पर घूम रहा है
वह ख्वाब बुरा ही सही, जो एक पल में टूट कर खत्म हो जाता था
हम रोज जी रहे है, यह हकीकत है जो खत्म ही नहीं होती
बेगुनाहों के खून से आज यह धरती लाल है
अगर यह हकीकत है,
तो वह भयानक ख्वाब मुझे कबूल है
जो एक पल में खत्म हो जाता है,
कुछ सोच कुछ नया जज्बा मुझे दे जाता है
वह बुरा ख्वाब आज मुझे अच्छा लगता है,
क्योंकि उसमें मैं इंसान को इंसान की तरह तो देख पाती हूं,
कम से कम उसमें मासूम लड़कियों का बलात्कार तो नहीं दिखता
उसमें कानून के हाथ में कुछ तो नजर आता है
उसमें ख्वाब आज हकीकत से ज्यादा खूबसूरत है
क्योंकि उसमें मेरे किसी अपने
मेरे भारत में किसी के साथ नाइंसाफी नहीं है
उसमें वह बुरा ख्वाब आज मुझे कबूल है
क्योंकि मेरे भारत की हकीकत से बहुत बहुत बहुत ऊपर है...