दल - बदलू नेता
दल - बदलू नेता
ये वाले नेता बड़े खुदगर्ज है
सुनते नहीं कभी जनता की अर्ज है
जनती चुनती प्रतिनिधि, देख बड़े अरमान
पर जीतते ही बंद हो जाते इनके कान
नेताओं का तो कोई ईमान - धर्म नहीं है
जनता के लिए होता इनका कोई कर्म नहीं है
वो क्या सुलझाएंगे समस्या, जो खुद उलझे हुए है
कभी कमल तो कभी हाथ के साथ खड़े हुए है ।
पहले पार्टी की बड़ी तारीफ करते फिर दल बदलते है
जिनपर जान न्योछावर करते, उन्हीं की आंखों में लड़ते है
इनके लिए कपड़े बदलने जैसा ये आसान काम है
है रावण से भी गिरे हुए पर दिखलाते अपने को राम है
नेताओं के वास्ते तो आसान सी ये बात है
भूल जाते पल में ये कितनी उम्मीदें इनके साथ है
भारत माता के हर दिन आंसू बहते है
इस देश में अब पटेल - गांधी भी घुट घुट के रहते है
इन नेताओं के आगे तो संविधान भी लाचार हुआ
लोकतंत्र भी इनके कारण बीमार हुआ।
उनके बारे में क्या लिखूँ जिनका कोई ठिकाना नहीं है
इन्हें तो कोई भी दल कभी भाना नहीं है।