बसंत ऋतु की छटा निराली
बसंत ऋतु की छटा निराली
बसंत ऋतु की है छटा बहुत निराली,
प्रसन्न हो रही है विटप की हर डाली।
मिलन राग छेड़े बसंती बयार,
कपोलों पर छाई लाज की लाली।
सरसों के खिल गए फूल मनमोहक,
भ्रमर ने पुष्प हृदय में जगह बना ली।
जीवन का अमर संगीत बजता है,
तरु में छुपकर गाए कोयल काली।
पर्ण विहीन मौसम का अंत हो गया है,
पर्ण युक्त हुए वृक्ष, ना रहा कोई खाली।
इंदु - चंद्रिका शीतलता देती है मन को,
ऋतुराजने भर दी उम्मीदों की प्याली।
क्यारियों में भाँति-भाँति के प्रसून खिले हैं,
देख आनंदित हो रहा है जग का माली।
धरा का है आंचल पुष्पों से सुगन्धित,
दूर तक फैली है कोमल हरियाली।
प्रकृति का आभार व्यक्त करने हेतु,
उर ने सजा ली है भाव प्रसूनों की थाली।
