बसंत का करो गुणगान
बसंत का करो गुणगान
बसंत का करो गुणगान आया है तूफान से
मौसमी खुमार ले के मोरनी की चाल से
यौवन उभार पर है कामिनी श्रृंगार पर
रूप रंग देख देख हुआ ,लाल गगन प्यार से....
खुशबू मिट्टी की फैली रंग ढंग फाग में
दिन रात स्वप्न सजे अंग अंग बहार से.....
बदल गई है बगिया हरियाली हरि हरि
चुनर ओढ़ी धाणी धाणी मतवाली चाल से......
बाग-बाग डाल-डाल रंग बिरंगे पंछी चहके
खुले आकाश उड़कर पंख पसारे चाल से......
नाचती बहार है नाच नाचती बयार है
हवाओं के साथ साथ कोकिल के गान से.....
फैला है उजियारा अंधियारा मुस्कुराहट से
सुंदर सुंदर नजारा देखे ,आया है कुदरत से.....