अंधेरे
अंधेरे
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धूप की दस्तक भी न मिटा पाए अंधेरे
ज़िद्दी थे सवेरे के साथ ही चले आए अंधेरे
कौन करे चिराग रौशन सबके लिए यहां
सभी को इन्तजार है कब आएंगे सवेरे
खुद जलानी पड़ती है अपने हिस्से की रौशनी
वरना आंखों के ख्वाब सारे खा जाएंगे अंधेरे
फितरत से तो सभी अच्छे होते हैं मगर
बदलते हैं इन्सान को हालात के थपेड़े
डरने न देना खुद को अंधेरे की सियाही से
यही सियाही लाएगी कामयाबी के सवेरे।