अजन्मा प्रतिकार
अजन्मा प्रतिकार
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मेरे भीतर
जन्म ले रहा है एक भ्रूण
इसका पालन पोषण
मेरा शरीर नहीं
वरन करता है
मेरा कुंठित मन
और
कुंठित मन का अधार है
बेकारी, भुखमरी,भ्रष्टाचार
और अन्याय तथा शोषण का
फैला हुआ साम्राज्य.
अगर हालत यही रहे तो
भ्रूण बनेगा शिशु ,
और शिशु से जवान
जो फिर
शब्द न देकर
देगा रक्त या लेगा रक्त
इस असहनीय व्यवस्था का
इससे व्यवस्था
टूटे या न टूटे, मगर
एक गूंज होंगी
जो इस देश की
गूंगी,बहरी,एवं अंधी
सत्ता सुनेगी ;
और महसूस करेगी
इस देश की
शोषित मानवता
अपने शोषण को .