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कवि काव्यांश " यथार्थ "

Children Stories Drama Tragedy Fantasy Inspirational Others Children

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कवि काव्यांश " यथार्थ "

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अधूरा आलिंगन (मेरी गुड़िया मेरे बाद)

अधूरा आलिंगन (मेरी गुड़िया मेरे बाद)

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कविता: “अधूरा आलिंगन”

( मेरी गुड़िया, मेरे बाद)

झुकी पलकें,
आँखें हैं नम,
बिस्तर पर जैसे तोड़े दम,
दिल में कोहराम, छुपाए गम,
होठों से कुछ भी, न कह पाए ।

तीन बरस की गुड़िया उसकी, 
उसके जीवन की एकमात्र धुन,
माँ का भी प्यार दिया जिसने, 
बनकर खुद को दो रूपों का जुनून।

हर दिन गोदी में झुलाना,
हर रात उसे लोरी सुनाना,
खुद भूखा रह उसे खिलाना, 
आंचल बन खुद को छुपाना।

मां की ममता, बाप का साया,
उसने खुद को दो हिस्सों में बंटाया।

पर अब शरीर जवाब दे रहा था उसका, 
रोती सांसें धड़कनों से लड़ रहीं थीं जैसे,
डॉक्टरों ने भी जब डालें हथियार , 
उसकी उम्मीदें भी रोती खड़ी थीं जैसे।।

दवा से नहीं अब तो दुआओं से काम था,
पर उसे चिंता सिर्फ एक ही नाम था—
"मेरी गुड़िया... मेरे बाद?"

रिश्तों की भीड़ में कोई भी अपना न था,
सगे होते हुए भी सन्नाटा हर दरवाज़ा था।
उसने एक अनाथ आश्रम को अपनी गोद सौंपी,
आँखों में आँसू, सीने में तूफान की गूँज थी छौंकी।

प्रपत्र भरे, दस्तावेज़ो में आँसू गिरा दिए,
हर लाइन में बेटी के लिए
सपने लिखा किए।
अपना सब कुछ उसके नाम किया ,
और जिम्मेदारी एक सच्चे आश्रय को सौंप दिया।

और फिर वो बिस्तर पर लौट आया,
गुड़िया से मिलने की ख्वाहिश आँखों में समाया।
पर वक्त ने अब मोहलत न दी उसे,
आँखें नमी नमी,
सांसों ने अंतिम विदाई ली उससे।।

"बिटिया... माफ़ कर देना
अपने बाबा को,
तुझसे जुदा में हो रहा हूं
बेबसी में रो-रो के।
तेरे गालों पर आख़िरी बार
मैं हाथ न फेर सका,
तेरी नींदों में अपनी लोरी
नहीं बुन सका।"

सो गया वो,
एक अधूरी बाहों का आलिंगन लिए,
बेटी की हँसीं बिना, सूनी साँसें लिए।
छत से टपकते पानी सा,
दिल का बोझ बहा गया,
और एक पिता,
सिर्फ बेटी के भविष्य की
चिंतातुर में जग छोड़ गया।

अब बेटी खेलती है
उस आश्रम की बगिया में,
कभी आसमान देखती है,
कभी मुस्काती है,
शायद वो जानती है—
“बाबा अब भी वहीं हैं...
इन तारे में बैठ कर,
रातों को मेरी नींदों में
गीत बुनते रहते हैं।”



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स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित रचना लेखक :- कवि काव्यांश "यथार्थ"
              विरमगांव, गुजरात।



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