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दयाल शरण

Others

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दयाल शरण

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अभिव्यंजना

अभिव्यंजना

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महसूस किया

फिर व्यक्त किया

कुछ शब्द ढले

कुछ अभिव्यक्त हुए

कुछ कहते हैं

यह कविता है

कुछ कहते हैं

उन्हें दर्प लगे


चाहे जो कुछ भी

तुम समझो

चाहे जो तुम इसका

अर्थ गढ़ो

यह इक मन की

अभिव्यक्ति है

इसे सुबह कहो

या शाम कहो


कुछ कहते हैं

रिश्तों पे ना लिखो

कुछ कहते हैं

प्रकृति में जीयो

अब उनको कैसे

समझाएं

अविरल जो है

उन्हें क्यों विरल करें


शब्दों के व्यापक

चित्रण में

महसूस करो जब

मैं यह हूँ

तो शब्दों की है

जीत यही

तुम कहो भले

इसे हार मेरी


कुछ कहते हैं

यह कविता है

कुछ कहते हैं

रिश्तों पे ना लिखो

निर्झरणी सी

अभिव्यक्ति है

इसे सुबह कहो

या शाम कहो।।


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