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Sakshi Purna

Abstract

3.5  

Sakshi Purna

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अब भेज दिया यह दैत्य कॉरोना

अब भेज दिया यह दैत्य कॉरोना

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थक गई थी तुमको समझते,

बियाबान करो मत जंगल सारे,

तुमने कहा,

मां.! चिंता करोना..


सौतेले से व्यवहार किया,

तुमने अन्य जंतु बंधु से,

डरी संहार देख मैं,

अपनी आंखें नीचे,

पर तुमने कहां..

मां.! डरो ना...


खेला तुमने पर्यावरण से,

धुएं में भरा जग सारा,

अपनी इस मां को,

इस कष्ट से भी ना उबारा,

फिर ठाठस् दिया तुमने,

मां.! अब होगा और गलत ना..


सब सहा,

सब देखती रही,

तुम्हारे अत्याचार मै झेलती रही,

मां हूं ना सो माफ़ किया,

फिर साफ़ किया दिल का कोना..


पर तुम गलतियों से बाज़ ना आए,

तो सूझा ना कुछ मुझे उपाय,

जैसे को तैसा अब मिला होगा,

तुम्हे अब मारना या सुधारना होगा,

सूत मेरे तूम आती प्रिय हो,

पर मुझे समझने में निष्क्रिय हो,

मां हूं तुम्हारी ना कोई खिलौना,

अब तुम मुझसे कुछ यूं डरो ना..

के आदिशक्ति ने वसुधा को बचाने,

अब भेज दिया यह दैत्य कॉरोना।।


अब तुम सिस्कोगे तब सुधरोगे,

जब खुद इस संक्रमण मै उलझोगे,

अपनी ही जेलों में बंद रहोगे,

छिपओगे पाकर तुम कोई कोना,

अब भेज दिया यह दैत्य कॉरोना ।।


गोविन्द बचाए तुम्हे कोविद से,

अब तुम भोगो यम तेरे पीछे,

तुम भी खुद से अब धीर धरोना,

अब भेज दिया यह दैत्य कॉरोना ।।


तुझे बंद कर मैं जी लूंगी,

अपना मंगल स्वयम करूंगी,

साफ हवा में सास भरूंगी,

दूजे शिशु - सूत बचा भी लूंगी,

तू अब ऐसा बीज पुनः मत बो ना..

खुद चला जाएगा यह दैत्य कॉरोना ।।

      


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